लोस उम्मीदवारों की घोषणा से भाजपा ने बनायी मनोवैज्ञानिक बढ़त
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Created on Wednesday, 27 March 2024 05:52
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Written by Shail Samachar
- सरकार की कर्ज लेने की गति से उपचुनावों में डबल इंजन की सरकार का नारा लगना तय
- हमीरपुर लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दाव पर
- अनुराग अब धूमल पुत्र से बढ़कर अनुराग सिंह ठाकुर हो गये हैं।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने मण्डी और कांगड़ा लोकसभा सीटों के लिये भी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। मण्डी से बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत और कांगड़ा से डॉ. राजीव भारद्वाज को प्रत्याशी बनाया गया है। दोनों पहली बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इन दोनों उम्मीदवारों की घोषणा से प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों के लिये भाजपा उम्मीदवारों के चयन का काम पूरा हो गया है। जबकि सरकार में बैठी कांग्रेस अभी सर्वे की प्रक्रिया से ही बाहर नहीं आ पायी है। भाजपा की यह घोषणा निश्चित रूप से ही कांग्रेस पर पहली मनोवैज्ञानिक बढ़त है। कांग्रेस को अपने उम्मीदवार घोषित करने के लिये अभी कितना समय लगेगा शायद इसकी सही जानकारी प्रदेश अध्यक्षा और मुख्यमंत्री को भी नहीं है। उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस जितना अधिक समय लेगी उससे यही संदेश जायेगा कि कांग्रेस में शायद चुनाव लड़ने के लिये कोई तैयार ही नहीं हो रहा है। पार्टी अध्यक्षा मण्डी से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है। ऐसा वह स्वयं कह चुकी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के बैंक खाते सरकार ने सीज कर रखे हैं यह बात स्वयं मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्षा ने एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में रखी है। लेकिन इस वार्ता में यह स्पष्ट नहीं किया कि ऐसा क्यों हुआ। और इसमें कानूनी तौर पर गलत क्या है। तथा पार्टी इसको आम आदमी के सामने रखकर उससे क्या अपेक्षा रखती हैं। यह विषय ही पत्रकार वार्ता में स्पष्ट न कर पाने से पार्टी की हताशा के खुलासे के साथ यह संदेश भी अनचाहे ही चला गया की चुनाव में खर्च का खुला प्रबंध पार्टी नही कर पायेगी और कार्यकर्ता तथा उम्मीदवार को बहुत कुछ अपने ही स्तर पर प्रबंध करना होगा। इस विषय पर कांग्रेस केंद्र सरकार और उसकी एजैन्सियों का कितना आक्रामकता के साथ मुकाबला करेगी ऐसा कोई संदेश मुख्यमंत्री नहीं दे पाये हैं।
भाजपा ने इस चुनाव में बड़ी रणनीति के तहत कांगड़ा और मण्डी से नये चेहरों को उतारा है। जो पहली बार किसी चुनाव में आये हैं। ऐसे में इन लोगों के खिलाफ पहले से ही कुछ नहीं है। यह लोग प्रदेश भाजपा के किसी भी भीतरी समीकरण का कोई बड़ा पात्र अभी तक नहीं है न ही इनके खि़लाफ़ सार्वजनिक जीवन से जड़े कोई बड़े सवाल चर्चा में है। ऐसे में इन चेहरों के मुकाबले में कांग्रेस को यहां ऐसे ही उम्मीदवार उतारने होंगे जिनका राजनीतिक कद इनसे कहीं बड़ा हो और कांग्रेस के इस संकट में उनकी भूमिका एकदम पारदर्शी रही हो। भाजपा ने शिमला से सुरेश कश्यप को पुनः उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस को एक बड़ी चुनौती दी है। कांग्रेस विधानसभा चुनावों में भाजपा पर शिमला लोकसभा क्षेत्र में बहुत भारी रही है। लेकिन सरकार बनने के बाद हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा दिये जाने के मामले में सरकार की कार्यप्रणाली जिस तरह से प्रश्नित रही है उससे सिरमौर में पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है। सोलन नगर निगम में कांग्रेस की भूमिका के कारण ही नगर निगम कांग्रेस के हाथ से निकल गयी। इसका प्रभाव सोलन में ग्रामीण भूमि विकास बैंक और जोन्गिदरा सहकारी बैंक के निदेशक मण्डल के लिये हुये चुनावों में देखने को मिला है। विधानसभा चुनावों में सोलन में कांग्रेस जितनी हावी रही थी उसके बाद उसी अनुपात में पीछे चली गयी है। शिमला में सरकार ने सबसे ज्यादा राजनीतिक पद बांटे हैं। इससे हर चुनाव क्षेत्र में इतने-इतने समान्तर सत्ता केंद्र बन गये हैं जिनमें आपसी तालमेल की बजाये एक दूसरे से प्रतिस्पर्धात्मक स्थितियां बन गयी हैं जिनका स्वभाविक लाभ भाजपा के पक्ष में जाता नजर आ रहा है।
हमीरपुर में भाजपा ने अनुराग को पांचवी बार टिकट दिया है। एक समय अनुराग की पहचान धूमल पुत्र होना थी। लेकिन आज अनुराग सिंह ठाकुर एक ऐसी स्वतंत्र पहचान बन गये हैं जिसके ऊपर पूरे प्रदेश की निगाहें लगी हुई हैं। एक समय अनुराग को चंडीगढ़ शिफ्ट किये जाने की पूरी विसात बिछा दी गयी थी। अनुराग चंडीगढ़ से चुनाव लड़ेंगे। यह मुख्य समाचार बना था। लेकिन इस विसात को मात देकर अनुराग ने प्रमाणित कर दिया कि वह राष्ट्रीय स्तर पर गिने जा रहे हैं। आज हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से चार कांग्रेसी और दो निर्दलीय भाजपा में शामिल हो गये हैं। पांच विधानसभा उपचुनाव इसी लोकसभा क्षेत्र से होंगे। इसी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री आते हैं। इनके जिलों से विधायक क्रॉस वोटिंग करके भाजपा में भी शामिल हो गये और यह कुछ नही कर सके। लोकसभा चुनाव के लिये अपने आप ही कांग्रेस का पक्ष कमजोर कर लिया। क्या यह सब अनुराग की जानकारी और सहमति के बिना घट गया होगा? शायद नहीं। लेकिन इस सबमें अनुराग कहीं चर्चा तक में नहीं आये। ऐसे में आज अनुराग के सामने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इस समय सुक्खू सरकार हर माह कर्ज के सहारे चल रही है और केंद्र सरकार पर यह आरोप है कि उसने कर्ज लेने की सीमा में कटौती कर दी है। क्या यह अपने में विरोधाभास नहीं हो जाता? कठिन वित्तीय स्थिति के चलते सरकार गारंटीयां पूरी नहीं कर पा रही है न ही रोजगार दे पा रही है। क्या यह स्थिति स्वतः ही इस धारणा को न्योता नहीं दे रही है कि केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होनी चाहिये। यदि इन उपचुनावों में डबल इंजन कि सरकार का नारा लगता है तो क्या जनता उस पर विचार करने के लिये बाध्य नहीं हो जायेगी? इस परिदृश्य में क्या सुक्खू सरकार का सकट स्वतःही गहरा नही होता जा रहा है।