क्या सुक्खू सरकार बनी रहेगी या राष्ट्रपति शासन लगेगा?

Created on Saturday, 02 March 2024 11:01
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार बच पायेगी या प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगेगा? राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद प्रदेश की राजनीतिक स्थिति इस मुकाम पर पहुंच गयी है। क्योंकि यह हार कांग्रेस के छः विधायकों द्वारा भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के कारण हुयी है। छः विधायकों के इस पाला बदलने के कारण कांग्रेस के विधायकों की संख्या 34 रह गयी है। राज्यसभा का यह मतदान बजट सत्र के दौरान हुआ। ऐसे में यदि बजट सत्र के कटौती प्रस्तावों या वित्त विधेयक के मतदान में सदन के पटल पर सरकार गिरती तो प्रदेश में तुरन्त प्रभाव से विधानसभा चुनाव करवाने की बाध्यता आ जाती। शायद विधानसभा चुनावों के लिये सत्ता पक्ष, विपक्ष और नाराज विधायक कोई भी तैयार नहीं था। इन चुनावों को टालने के लिए सदन में जो कुछ हुआ उसके बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की बाध्यता खड़ी हो गयी है।
जब राज्यसभा चुनाव में सत्ता पक्ष को क्रॉस वोटिंग होने का अहसास हुआ तो इसके लिये व्हिप जारी करने पर विचार किया गया और रोहित ठाकुर, जगत सिंह नेगी, हर्षवर्धन चौहान और संजय अवस्थी को सचेतक नियुक्त करने का समाचार अखबारों में छप गया। लेकिन जैसे ही यह छपा कि जब प्रदेश में सचेतक नियुक्त ही नहीं है तो सचेतक परिपत्र कैसे जारी होगा? समरणीय है कि हिमाचल में 2018 में सचेतक अधिनियम के तहत सचेतकों के वेतन भत्ते आदि पारित हैं। इसकी धारा सात में स्पष्ट कहा गया है कि जब भी कोई सचेतक नियुक्त होगा या अपना पद छोड़ेगा तो इस आश्य की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित होगी। लेकिन अभी तक सचेतक नियुक्त किये जीने की कोई भी अधिसूचना सामने नहीं आयी है। इस आश्य का अधिनियम होने के बाद कोई भी दूसरा व्यक्ति सचेतकीय जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर सकता और न ही ऐसा करने के लिये अधिकृत किया जा सकता है।
ऐसे में कांग्रेस के छः विधायकों की दल बदल कानून के तहत विधानसभा सदस्यता भंग करने का जो फैसला आया है उसका आधार वित्त विधेयक के लिये जारी व्हिप की उल्लंघना कहा गया है। अध्यक्ष के इस फैसले की प्रति मीडिया को विधानसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध नहीं करवाई गयी है। अध्यक्ष के इस फैसले पर अदालत में जब चर्चा आयेगी तो पहला प्रश्न यही आयेगा कि जिस व्हिप की उल्लंघना का आरोप लगा है वह जारी कब हुआ? उसे जारी करने वाला सचेतक नियुक्त कब हुआ था? उसकी नियुक्ति की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित कब हुयी थी? विधानसभा सचिवालय इन प्रश्नों पर मौन चल रहा है। इसमें इन विधायकों का निष्कासन कानून की नजर में वैध ठहर पायेगा इसको लेकर गंभीर शंकाएं उभर रही है।
माना जा रहा है कि यह निष्कासन स्टे हो जायेगा। दूसरी ओर कांग्रेस के नाराज विधायकों को मनाने के लिये किये जा रहे प्रयासों के कोई भी संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। विक्रमादित्य सिंह को लेकर किये जा रहे दावों कि सच्चाई भी सामने आ चुकी है। बल्कि नाराज विधायकों की संख्या बढ़ने के संकेत सामने आ रहे हैं। जनता में एक अलग तरह की प्रतिक्रिया उभर रही है और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बनती जा रही है। इस वस्तुस्थिति पर राजभवन कितनी देर तक मूक दर्शक की भूमिका में रह सकता है? राज्यपाल को प्रदेश की राजनीतिक वस्तुस्थिति पर अन्ततः केन्द्र को रिपोर्ट भेजनी ही होगी। इस अनिश्चितता की स्थिति में केन्द्र को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नहीं रह जायेगा। विश्लेष्कों की नजर में अध्यक्ष द्वारा निष्कासन का फैसला जल्दबाजी में उठाया गया कदम है। इससे संकट और गहरा गया है। यदि सचेतक की नियुक्ति अधिसूचित नहीं होगी दो स्थिति और भी हास्यस्पद हो जायेगी। क्योंकि निष्कासित विधायक रजिस्टर पर हाजिरी लगाने का दावा कर रहे हैं।