निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की कार्यप्रणाली सवालों में

Created on Monday, 02 October 2023 18:23
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश को जब शैक्षणिक हब बनाने के लिये कई निजी विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थान खोले गये थे तब शिक्षा का बाजारीकरण किये जाने के आरोप लगे थे। यह आशंका जताई गयी थी कि इन संस्थानों में शैक्षणिक मानकों की अनुपालना नहीं की जायेगी और यह संस्थान शिक्षा के बिक्री केंद्र बनकर रह जायेंगे। इनमें छात्रों और अभिभावकों का उत्पीड़न होगा। इन आशंकाओं की गंभीरता को नापते हुए 2010 में इन संस्थानों पर निगरानी रखने के लिये नियामक आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को यह जिम्मेदारी दी गयी थी कि वह इन संस्थानों में तैनात शैक्षणिक और प्रशासनिक स्टाफ को लेकर यह देख की स्टाफ तय मानकों के अनुसार है या नहीं। इन संस्थानों में पढ़ाये जा रहे विषयों में छात्रों की संख्या संतोषजनक है या नहीं। बच्चों के बैठने के लिये आवश्यक स्थान है या नहीं। जब कोई संस्थान तय मानकों के अनुरूप नहीं पाया जाता है तो उसे यह आयोग जुर्माना लगाकर तय समय तक अपनी कमियां पूरी करने के निर्देश देता है। यदि निर्देशों के बाद भी कमियां पूरी नहीं हो पाती हैं तो उससे वही पढ़ाई जाने वाले कोर्स तक छीनने की शक्तियां इस आयोग के पास हैं। कोर्सों में छात्रों की संख्या कभी ज्यादा करने और नये कोर्स देने की शक्तियां आयोग के पास हैं। आयोग अपने सारे कार्यों को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दर्ज करता है। यह रिपोर्ट सरकार से लेकर विधानसभा के पटल पर रखी जाती है। हर विश्वविद्यालय की संचालन समिति में विधानसभा की ओर से विधायक भी मनोनीत किये जाते हैं ताकि पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित रहे।
2020 तक इस आयोग की कार्यप्रणाली लगभग ठीक चलती रही है। इसकी वार्षिक रिपोर्ट समय पर छपती रही है और सार्वजनिक होती रही है। लेकिन 2020 से इसकी रिपोर्ट नहीं छप रही है। जब इसी दौरान यह आयोग कई बड़े छोटे आयोजन कर चुका है जिनमें राज्यपाल, मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री तक शामिल हो चुके हैं। इन आयोजनों में निजी विश्वविद्यालयों की भागीदारी भी होती रही है। ऐसे आयोजनों को लेकर आर.टी.आई. एक्टिविस्ट कई जानकारियां भी हासिल कर चुके हैं। इन्हीं जानकारीयों से यह सामने आ चुका है की कई विश्वविद्यालयों को कई कोर्सों में इतनी इतनी सीटें दे दी गयी है जितनी कि वर्षों से चले आ रहे सरकारी संस्थानों में भी नहीं है इनमें शूलिनी विश्वविद्यालय तक का भी नाम सामने आ चुका है। इसी तरह ऊना के बाथू स्थित इण्डस इन्टरनैशनल विश्वविद्यालय की 4-8-2022 और फिर 30-1-2023 को हुई इन्सपैक्शन रिपोर्टों के अनुसार इसमें आयोग्य अध्यापक और केवल 56 प्रतिशत छात्रों द्वारा ही क्लासें लगाने का रिकॉर्ड रिपोर्ट में दर्ज है। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि यह विश्वविद्यालय अध्यापकों को यू.जी.सी. के मानको अनुसार वेतन नहीं दे रहा है। इन कर्मियों के लिये शायद इसे जुर्माना भी लगाया गया है। मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को एक अजय कुमार ने ईमेल से शिकायतें भी भेजी है। लेकिन नियामक आयोग ने अपनी रिपोर्टों को नजरअन्दाज करके इस विश्वविद्यालय को 2023-24 के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजैन्स, साईबर सिक्योरिटी, एलएलबी, फूड प्रोडक्शन, डी फार्मेसी और बीएएमएस जैसे महत्वपूर्ण कोर्स भी आवंटित कर दिये हैं। ऐसा क्यों और किस आधार पर किया गया है यह जांच का विषय है।