प्रकृति से ज्यादा सरकार की योजनाएं जिम्मेदार रही है इस विनाश के लिये
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Created on Tuesday, 15 August 2023 19:33
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Written by Shail Samachar
मौत की भरपाई कोई निर्माण नहीं कर सकता यह समझना होगा
एन.जी.टी. के फैसले की अनुपालना क्यों नहीं हो रही?
सारा विनाश जल विद्युत परियोजनाओं और फोरलेन निर्माण क्षेत्रों में ही क्यों हुआ।
शिमला/शैल। इस बार भारी बरसात के कारण जो नुकसान हुआ है उससे प्रदेश का कोई जिला नहीं बचा है। सैकड़ो के हिसाब से इंसान और पशु मारे गये हैं। कई जगह पूरे के पूरे गांव तबाह हो गये हैं। पूरे नुकसान के पूरे आंकड़े आने में लम्बा समय लगेगा। सरकारी और निजी संपत्ति का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करने में दसकांे लग जायेंगे। पूरे प्रदेश में सारे शिक्षण संस्थान एक साथ बन्द करने पड़े हैं। शिमला में ही एक मंदिर में एक साथ इतने लोगों का दब जाना और शहर की हर मुख्य सड़क का ब्लॉक हो जाना अपने में ही कुछ ऐसे सवाल खड़े कर जाता है जिन्हेें टालना भविष्य के और नुकसान को न्योता देना होगा। क्योंकि जिस शिमला को स्मार्ट बनाने की योजना पर काम चल रहा हो जब वही प्रकृति का बंधक होकर रह जाये तो यह सोचना ही पड़ेगा कि यह सब एक साथ कैसे घट गया? क्या इसके लिये हमारी नीतियां और महत्वकांशायें भी जिम्मेदार नहीं रही है। क्योंकि हिमाचल भूकंप जोन चार और पांच में आता है। विभिन्न संस्थानों के अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर माह छोटे स्तर के पांच भूकंप के झटके आते हैं। वाडिया संस्थान देहरादून के मुताबिक अक्तूबर 2021 से मार्च 2023 तक प्रदेश में भूकंप के 87 झटके आ चुके हैं। ऊना को छोड़कर हर जिले में यह झटके आये हैं। आंकड़ों के अनुसार चम्बा 26 मण्डी 15 किन्नौर 12 शिमला 11 कांगड़ा 7 लाहौल-स्पीति 4 कुल्लू 4 सिरमौर 3 हमीरपुर 2 बिलासपुर 2 सोलन 1 और ऊना 0। अध्ययन के अनुसार छोटे झटकों से भूस्खलन आता है।
इन आंकड़ों के साथ ही जल विद्युत अध्ययन और कार्यरत योजनाओं के आंकड़ों पर भी नजर डालना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि हिमाचल को जल विद्युत राज्य के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया गया है। हिमाचल में 27436 मैगावाट जल विद्युत चिन्हित की गयी है। इसमें से 24000 मैगावाट का दोहन योग्य करार दिया गया है। 20912 मैगावाट की परियोजनाएं निर्माण के लिये आबंटित भी हो चुकी है और 10519 मैगावाट की परियोजनाएं उत्पादन में आ चुकी हैं। इन परियोजनाओं के निर्माण में जो बांध बनाये गये हैं जो सुरगंे निकाली गयी हैं उसमें हुये खनन से जो लाखों टन मलवा निकला है उसे कहां डाला गया? इनके लिये जो सड़क निर्माण हुआ उसमें जो पेड़ और पहाड़ काटे गये क्या उससे पर्यावरण प्रभावित नहीं हुआ? 2010 में प्रदेश उच्च न्यायालय में आयी एक याचिका में अदालत ने इस सबके अध्ययन के लिये एक शुक्ला कमेटी गठित की थी। उस कमेटी की रिपोर्ट में आया है की चम्बा में रावी पर बन रही परियोजनाओं में 65 किलोमीटर तक रावी अपने मूल स्वरूप से गायब है। इस रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने जो दिशा-निर्देश सरकार और विद्युत निर्माता कंपनियों को दिये हैं उन पर आज तक कोई अमल नहीं हो पाया है।
राजधानी शिमला में ही अवैध निर्माणों को प्रोत्साहन देने के लिए नौ बार रिटैन्शन पॉलिसीयां लायी गयी हैं। प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर एन.जी.टी. और सर्वाेच्च न्यायालय तक इस पर गंभीर टिप्पणियां कर चुके हैं। दोषियों को नामतः चिन्हित करके उनके खिलाफ कड़ी कारवाई करने के निर्देश तक अदालत दे चुकी है। लेकिन किसी भी सरकार ने यह कारवाई करने का साहस नहीं किया है। सारी सरकारें इसके लिये बराबर की दोषी रही हैं। एन.जी.टी. ने नवम्बर 2016 में शिमला में नये निर्माण पर प्रतिबन्ध लगाया था। शिमला में ढाई मंजिल से अधिक का निर्माण नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके बाबजूद अदालत में. आये रिकॉर्ड के मुताबिक तीस हजार के करीब अवैध निर्माण हो चुके हैं। इसी का संज्ञान लेते हुये शीर्ष अदालत ने शिमला प्लान को अभी अनुमोदित नहीं किया है। लेकिन सुक्खू सरकार ने भी अवैधता को आगे बढ़ाते हुये ऐटीक फ्लोर को रिहाईशी योग्य बनाने और बेसमैन्ट को खोलने के आदेश नगर निगम चुनाव में कर दिये। ए.जी.टी.का फैसला प्रदेश सरकार की अपनी रिपोर्ट पर आधारित है। तरुण कपूर जो इस समय प्रधानमंत्री के सलाहकार भी है उनकी रिपोर्ट एन.जी.टी. के फैसले का बड़ा आधार है।
यह सारी चर्चा इसलिये आवश्यक है क्योंकि इस आपदा में जो नुकसान है उसका बड़ा क्षेत्र जल विद्युत परियोजनाओं और फोरलेन सड़कों का निर्माण क्षेत्र रहा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस विनाश के लिये सरकार की योजनायें सबसे ज्यादा जिम्मेदार रही है। क्योंकि भूकंप के लिये हुये अध्ययनों में साफ कहा गया है कि इसके लिये जलविद्युत परियोजनाओं और सड़क निर्माण परियोजनाओं के लिये हुआ अवैज्ञानिक खनन जिम्मेदार है। प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री ने भी इस विनाश के लिये अवैध खनन को जिम्मेदार ठहराया है। इस परिदृश्य में भविष्य के लिये जल विद्युत परियोजनाओं और फोरलेन सड़कों के निर्माण पर नये सिरे से विचार करना होगा। क्योंकि मौत की भरपाई कोई निर्माण नहीं कर सकता।