कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर प्रतिभा के बाद राठौर भी हुये मुखर
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Created on Monday, 31 July 2023 04:34
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Written by Shail Samachar
जिन लोगों ने चुनावों में कांग्रेस को विरोध किया उनकी ताजपोशी क्यों और कैसे
आम आदमी को महंगाई और बेरोजगारी के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पायी यह सरकार
बेरोजगार युवा होने लगे लामबन्द
मित्रों की ही सरकार होकर रह गयी सुक्खू सरकार
कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर बने मामले तक वापस नहीं हुये
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार को सत्ता में आये अभी आठ माह का ही समय हुआ है। लेकिन इस अल्पकाल में ही यह सरकार अपनों के ही निशाने पर आ गयी है। यह निशाना भी किसी और ने नहीं बल्कि पार्टी की अध्यक्षा एवं सांसद प्रतिभा सिंह तथा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता विधायक कुलदीप राठौर ने साधा है। सरकार पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी किये जाने का आरोप है। प्रतिभा सिंह यह शिकायत राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे से दिल्ली में मुलाकात करके उनके संज्ञान में ला चुकी है। कुलदीप राठौर ने शिमला में एक पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री से मांग की है कि जिन सैकड़ों कार्यकर्ताओं के दम पर पार्टी सत्ता में आयी है उन्हें उचित मान सम्मान दिया जाना चाहिये। राठौर ने कहा है कि पिछली सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए दर्जनों कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले बने जो अब तक वापस ले लिए जाने चाहिए लेकिन ऐसा हुआ नहीं है राठौर के मुताबिक उनके अपने खिलाफ भी कई मामले बने हैं। लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने तो अधिकारियों को लक्ष्मण रेखा न लांघने की चेतावनी देते हुये यहां तक कहा है कि जो प्रस्ताव विभाग की ओर से सरकार को भेजे जाते हैं वह दिल्ली पहुंचते-पहुंचते कैसे बदल जाते हैं।
सुक्खू सरकार के खिलाफ यह आम आदमी की शिकायत है कि उसके काम नहीं हो रहे हैं। यह पता ही नहीं चलता कि उनके प्रतिवेदन कहां चले जाते हैं। कुछ मंत्रियों की भी यही शिकायत है कि विभाग में सचिव और निदेशक के स्तर पर उनके आदेशों की अनुपालना नहीं हो रही है। चर्चा है कि मंत्री जब अपने विभाग के सचिव की शिकायत लेकर मुख्यमंत्री के पास गये और सचिव को बदलने का आग्रह किया तो मुख्यमंत्री ने सचिव को बदलने की बजाये मंत्री का ही विभाग बदलने की पेशकश कर दी। सरकार में शक्तियों के इस जुबानी केंद्रीयकरण पर उस समय मोहर लग गयी जब एक बड़े अधिकारी को मुख्यमंत्री ने डांट लगा दी। चर्चा है कि बड़े अधिकारी के कार्यालय में मुख्यमंत्री से अनुमति प्राप्त कुछ आवेदन/प्रतिवेदन आगामी अनुपालना के लिये पहुंचे थे। अधिकारी ने उन पर तुरन्त प्रभाव से अमल कर दिया। अमल करने की रिपोर्ट लेकर अधिकारी मुख्यमंत्री को सूचित करने उनके कार्यालय पहुंच गये। मुख्यमंत्री से मिलने गये तो उन्हें पी.एस. के कमरे में प्रतीक्षा करने के लिये कह दिया। कुछ समय बाद मुख्यमंत्री वहां आये और अधिकारी को डांट दिया कि उनसे बिना पूछे उनकी अनुमतियों पर अमल कैसे कर दिया। वह तो हरके आवेदन पर अप्रूवल कर देते हैं लेकिन करना वही होता है जिसका वह संदेश करें। मुख्यमंत्री कार्यालय में घटा यह किस्सा सचिवालय के गलियारों से लेकर स्कैंडल तक हर एक की जुबान पर है। मुख्यमंत्री को इस तरह के केंद्रीयकरण की आवश्यकता क्यों आ पड़ी है इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म है और शायद यह दिल्ली दरबार तक भी पहुंच चुका है।
इस समय सरकार बनने के बाद जितने गैर विधायकों की ताजपोशी की गयी है उनका एक ही मानदण्ड रहा है मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत मित्रता। इस मित्रता में दो-चार ऐसे लोग भी हैं जो भाजपा के समर्थक और कांग्रेस के विरोधी रहे हैं। चुनावों में ऐसे लोगों ने कुछ स्थानों पर कांग्रेस प्रत्याशियों का खुलकर विरोध किया है। इस पर तो यहां तक चर्चा चल पड़ी है कि ऐसा किसी निश्चित योजना के तहत तो नहीं किया गया था। माना जा रहा है कि जल्द ही इस दिशा में कोई बड़ा खुलासा सामने आने वाला है। शायद इसी वस्तुस्थिति के कारण हाईकमान के रणनीतिकार के सर्वे से लेकर एक टी.वी. चैनल और ज्योतिष की भविष्यवाणीयों तक में आ रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रदेश की चारों सीटें हार जायेगी। इन आकलन में इसलिये दम लग रहा है क्योंकि यह सरकार आठ माह में सात हजार करोड़ का कर्ज लेने के बाद भी आम आदमी को महंगाई और बेरोजगारी के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पायी है। बेरोजगार युवा सरकार के खिलाफ लामबन्द होने लग गया है। विपक्ष सरकार पर हमलावर होना शुरू हो गया है। भाजपा यह आरोप लगा रही है कि यह तो केवल मित्रों की सरकार है आम आदमी से इसका कोई लेना देना नहीं है। कोई भी कांग्रेस नेता भाजपा के आरोपों का कारगर जवाब नहीं दे पा रहा है। अब यह देखना शेष है कि कांग्रेस हाईकमान इस स्थिति का क्या संज्ञान लेती है। क्योंकि सरकार अभी जनता को दी गारंटीयों पर कुछ ज्यादा नहीं कर पायी है। ओल्ड पैन्शन को लेकर भी निगमों/बोर्डों के कर्मचारियों के प्रति अभी सरकार स्थिति स्पष्ट नहीं कर पायी है। कर्मचारी इस पर आन्दोलन तक की बात कर रहे हैं। हिमाचल सरकार की व्यवहारिक स्थिति को यदि भाजपा ने प्रदेश से बाहर भी उठा दिया तो पार्टी के लिये एक बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा। क्योंकि हिमाचल सरकार पिछली भाजपा सरकार के प्रति जिस तरह का नरम रुख लेकर चल रही है उससे कई तरह के सवाल उठने लगे पड़े हैं।