शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के पदभार संभालने के बाद मुख्यमंत्री ने सत्ता संचालन के सूत्र के रूप में प्रदेश की जनता से यह कहा था कि वह राज करने नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन करने आये हैं। इस आठ माह में व्यवस्था परिवर्तन के प्रयोग से जो अवस्था शासन-प्रशासन में उभर कर आयी है उसके परिणाम स्वरूप आज सुक्खू के मंत्री अपने में ही आमने सामने खड़े होने के कगार पर पहुंच गये हैं। शिमला टैक्सी यूनियन विवाद में पहली बार मंत्री आपस में उलझे। उसके बाद अवैध खनन पर मंत्री टकराव में आये। सेब ढुलाई के मामले में तो बागवानी मंत्री और मुख्यमंत्री के ही अलग-अलग स्टैंड सामने आ गये हैं। अब लोक निर्माण मंत्री को तो पत्रकार वार्ता के माध्यम से यह कहने की नौबत आ गयी की अधिकारी अपनी सीमा न लांघें। पार्टी अध्यक्षा को तो राष्ट्रीय अध्यक्ष से यह कहना पड़ गया है कि वह अपने को आहत और उपेक्षित महसूस कर रही हैं। यह सब कुछ प्रदेश की जनता के सामने खुलकर आ चुका है क्योंकि व्यवहारिक सच यही है। नेता प्रतिपक्ष से लेकर नीचे तक सारा विपक्ष इस पर तंज कर रहा है। इस तरह सरकार की जो तस्वीर आम आदमी में बनती जा रही है उसको सामने रखते हुये यह नहीं लगता कि आने वाले लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटों पर कब्जा कर पायेगी। हाईकमान के पास भी एक सर्वे के माध्यम से यह स्थिति पहुंच चुकी है। यदि समय रहते हालात पर नियन्त्रण न पाया गया तो इससे राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के लिये स्थितियां कठिन हो सकती हैं।
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि अब तक जो घटा है उस पर कुछ विस्तार से चर्चा की जाये। स्मरणीय है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदेश की जनता को दस गारंटीयां जारी की थी। यह गारंटीयां जारी करते हुये यह नहीं कहा गया था कि इन्हें अगले विधानसभा चुनाव के चुनावी वर्ष में लागू किया जायेगा। बल्कि इन गारंटीयों पर लोकसभा चुनावों में जनता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से जवाब मांगेगी। क्योंकि गांव में यह सवाल कार्यकर्ता से ही पूछे जायेंगे। वहां पर बड़ा नेता तो उपलब्ध नहीं रहता है। मंत्रियों में जो यह आमने-सामने की स्थितियां बनती जा रही है इस पर सवाल पूछे जायेंगे। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज कांग्रेस का कार्यकर्ता ही अपने को हताश और उपेक्षित महसूस कर रहा है। क्योंकि ब्लॉक और जिला स्तर पर वही प्रशासनिक व्यवस्था बैठी हुई हैं जो भाजपा शासन के दौरान वहां पर थी और उसी के खिलाफ आम कार्यकर्ता का गुस्सा था रोष था। व्यवस्था के नाम पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को यह लग ही नहीं रहा है कि सरकार बदल गयी है। क्योंकि सरकार बदलने के बाद दो माह के भीतर ब्लॉक जिला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण और प्लानिंग कमेटीयां गठित होती थी जिनमें पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सदस्य नामित किया जाता था और इस तरह करीब दो हजार कार्यकर्ता अपने को सम्मानित महसूस करते थे। सरकार की सहायता के लिये एक समानान्तर व्यवस्था खड़ी हो जाती थी। विभिन्न निगमों/बोर्डों में संचालन मण्डल गठित किये जाते थे। इन कदमों से संगठन मजबूत होता था। सरकार बनने के बाद संगठन को मजबूती प्रदान करना सरकार का दायित्व होता है। लेकिन सरकार ने इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। कार्यकर्ता जब संगठन के पदाधिकारियों से इस बारे में कोई बात उठाते हैं तो यही निष्कर्ष निकलता है कि सरकार जानबूझकर संगठन को कमजोर कर रही है।
भाजपा शासन में जनता महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त थी। इसी से सत्ता परिवर्तन हुआ था। जनता को यह आशा थी कि उसे महंगाई और बेरोजगारी से राहत मिलेगी। लेकिन इन आठ माह में इन दोनों मुहानांे पर जनता को घोर निराशा ही अब तक मिली है। क्योंकि बिजली पानी और राशन हर चीज के दामों में बढ़ौतरी की गयी है। दो बार तो डीजल के रेट बढ़ाये गये हैं जिसका असर हर चीज पर हुआ है क्योंकि ट्रक यूनियनों ने इसके कारण माल भाड़े के रेट बढ़ा दिये हैं। युवाओं को रोजगार देने के मामले में भी यह सरकार कुछ नहीं कर पायी है। बेरोजगार युवा सरकार के खिलाफ लामबन्द होता जा रहा है। सरकार के आते ही एक लाख युवाओं को रोजगार देने की गारंटी दी गयी थी। लेकिन रोजगार देने के बजाये उस अदारे को ही बन्द कर दिया गया जिसके माध्यम से रोजगार मिलता था। लोक सेवा आयोग को यह अतिरिक्त काम सौंपा गया है और इससे उसका काम भी प्रभावित हो गया है। क्योंकि वहां पर कोई नये संसाधन इस काम के लिये नहीं दिये गये हैं। जबकि वहां पर सदस्य का एक पद खाली चला आ रहा है जिसे भरकर आयोग के संसाधन बढ़ाये जा सकते थे। आम आदमी की भी यही शिकायत है कि उसके काम नहीं हो रहे हैं। अभी स्थानान्तरणों को लेकर महीने के अंतिम चार दिनों में ही विचार किये जाने की जो नीति घोषित की गयी है उस पर विधायक रवि ठाकुर ने ही खुलेआम नाराजगी व्यक्त कर दी है।
इस समय आम आदमी सरकार से संतुष्ट नहीं है उसे लग रहा है की गारंटीयां देकर उससे छल किया गया है। सरकार नाजुक वित्तीय स्थिति के नाम कीमतें बढ़ाने के अतिरिक्त संसाधन जुटाने का और कोई व्यवहारिक उपाय कर नहीं रही है। कीमतें इस तरह से बढ़ाई जा रही है कि लोग जल्द ही इसे भूल जायेंगे। इस आपदा में भी सरकार राहत राशि बढ़ाने की घोषणाएं तो करती जा रही हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से पीड़ित तक यह सहायता पहुंचने में लम्बा समय लगेगा। ऐसे हालात में जब मंत्रियों/विधायकों के लिये भी यह स्थिति आ जाये कि अफसरशाही इन्हें भी हल्के से लेना शुरू कर दें तो स्थिति निश्चित रूप से विस्फोटक होने के कगार पर पहुंच चुकी है। यह विक्रमादित्य की पत्रकार वार्ता से स्पष्ट हो गया है। विक्रमादित्य सिंह का अफसरशाही को यह कहना कि वह लक्ष्मण रेखा न लांघें और इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा अपने में बहुत कुछ संकेत दे जाता है। विक्रमादित्य सिंह ने दिल्ली जाकर केंद्रीय मंत्रियों के सामने जिस तरह से पक्ष रखा है उससे प्रदेश के लिये उन्होंने तीन हजार करोड़ का प्रबंध करके अपनी सूझबूझ और कार्यकुशलता का परिचय दे दिया है। उनके कदमों को किसी दण्डित कर्मचारी नेता के ब्यानों के माध्यम से रोकना संभव नहीं होगा। इस पत्रकार वार्ता के बाद संगठन और सरकार में हर उस व्यक्ति की उम्मीद और आवाज बन जायेंगे जो इस वातावरण में अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।