क्या सरकार में आपसी तालमेल का अभाव है

Created on Tuesday, 30 May 2023 12:51
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने डॉक्टरों का एनपीए बन्द कर दिया है। सरकार के इस फैसले से आहत होकर डॉक्टर हड़ताल पर चले गये हैं। सरकार के इस फैसले का स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। क्योंकि एनपीए बन्द होने का अर्थ होगा कि डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करने के लिये स्वतंत्र होंगे। सरकार ने यह फैसला क्यों लिया और इस पर उभरे रोष के कारण शुरू हुई हड़ताल का अन्तिम परिणाम क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस घटनाक्रम में एक महत्वपूर्ण तथ्य जो सामने आया है उसके मुताबिक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धनीराम शांडिल को ही इस फैसले की जानकारी नही है। जब मीडिया ने उनसे इस फैसले के बारे में पूछा तो उन्होंने स्वयं कहा कि उन्हें इसकी जानकारी ही नही है। विपक्षी भाजपा ने स्वास्थ्य मंत्री की इस अनभिज्ञता के बारे में सरकार और मंत्री को आड़े हाथों लिया है। इससे भाजपा ने आरोप लगाया है कि एनपीए बन्द करने का मामला मंत्री परिषद की बैठक में लगा था और वहां सरकार ने फैसला लिया है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री फैसले की उन्हें जानकारी ही नही होने की बात क्यों कर रहे हैं? क्या उन्हें सही में यह याद ही नही रहा है कि उनके विभाग को लेकर कोई ऐसा फैसला लिया गया था या वह मामले को टालने की नीयत से अनभिज्ञता जता रहे थे। इसमें वास्तविकता क्या रही है यह तो मंत्री या सरकार ही स्पष्ट कर पायेंगे। लेकिन इस प्रकरण से आम आदमी में मंत्री और सरकार के बीच तालमेल को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि इससे पूर्व सहकारिता विभाग को लेकर भी एक अजीब फैसला आया है। सहकारिता विभाग का प्रभार उप-मुख्यमत्री मुकेश अग्निहोत्री को सौपने से पहले प्रदेश के तीनों सहकारी बैंकों हिमाचल स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक और जोगिन्द्रा को-ऑपरेटिव का कंट्रोल सहकारिता विभाग से निकालकर वित्त विभाग को सौंप दिया गया है। यह बैंक सहकारिता अधिनियम के तहत स्थापित हुये हैं और इन्हीं नियमों से संचालित होते हैं। ऐसे में इनका नियंत्रण वित्त विभाग को सौंपने से पूर्व नियमों में संशोधन किया जाना चाहिये था जोकि नहीं हुआ है। कुछ हल्कों में इस फैसले को मंत्री पर अविश्वास तक करार दिया जा रहा है। क्योंकि परिवहन विभाग को लेकर कुछ ऐसा ही घट चुका है। परिवहन पर मंत्री की पत्राकार वार्ता से पहले परिवहन पर ही मुख्यमंत्री का प्रेस नोट जारी कर दिया जाना भी कोई अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। ऐसी घटनाओं से सरकार को लेकर आम आदमी में कोई बहुत अच्छा संकेत और संदेश नहीं जा रहा है। कांग्रेस संगठन और सरकार में भी तालमेल के अभाव की चर्चाएं अब उठने लग पड़ी हैं। पत्र बम्ब फूटने शुरू हो गये हैं। सरकार जनता को अभी कोई राहत दे नहीं पायी है। संगठन के लोगों को भी छः माह में सरकार में कोई बड़ा मान सम्मान नही मिल पाया है। यह सरकार भी कुछ लोगों में घिर कर रह गयी है। यह चर्चाएं उठना शुरू हो गयी है।