ओल्ड पैन्शन बहाली के प्रचार-प्रसार पर 18 दिनों में 53,66,951 रूपये खर्च किये सुक्खु सरकार ने

Created on Monday, 20 March 2023 11:33
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खु सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पैन्शन योजना बहाल कर दी है। क्योंकि यह चुनावी वायदा और मंत्रिमण्डल की पहली ही बैठक में इसे लागू करने का वायदा किया गया था। इस आश्य का फैसला 13 जनवरी को लिया गया था। इस फैसले को प्रचारित प्रसारित करने के लिये सरकार ने 31 जनवरी तक 18 दिनों में 53,66,951 रुपये समाचार पत्रों, दूरदर्शन, आकाशवाणी व अन्य स्थानीय चैनलों के माध्यम से विज्ञापनों पर खर्च किये हैं। यह जानकारी 16-03-2023 को भरमौर के विधायक डॉ. जनक राज के प्रश्न के उत्तर में सरकार ने दी है। 24 समाचार पत्रों और चार स्थानीय चैनलों में यह विज्ञापन जारी किये गये हैं। सरकार की विज्ञापन नीति पिछली सरकार के समय से ही विवादित रही है। इस सरकार में भी यह विवाद बना हुआ है और अब तो मामला उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है। सर्वोच्च न्यायालय और प्रैस परिषद कुछ मामलों में यह स्पष्ट फैसले दे चुकी है कि विज्ञापनों पर खर्च होने वाला पैसा सरकारी धन है और उसके आबंटन में पक्षपात नहीं किया जा सकता। अभी पिछले दिनों पंजाब सरकार की मोहल्ला क्लीनिक योजना का विज्ञापन कुछ बाहर के प्रदेशों के अखबारों में देने की बात आयी थी। सरकार यह विज्ञापन देना चाहती थी इस पर शायद दस करोड़ खर्च होने थे। लेकिन संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिव ने इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि यह योजना पंजाब के लिये है। इसका प्रचार-प्रसार दूसरे प्रदेशों में पंजाब के पैसे से नहीं किया जा सकता।
यह प्रकरण यहां इसलिये प्रसांगिक हो जाता है की पुरानी पैन्शन हिमाचल के कर्मचारियों को मिली है। प्रदेश सरकार का यह अपना फैसला है और सिर्फ कर्मचारियों तक सीमित है। क्या इस फैसले को इस तरह विज्ञापनों के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाना आवश्यक है। हिमाचल में पर्यटन को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किये जाने की आवश्यकता हो। फिर जिस तरह की वित्तीय स्थितियों से प्रदेश गुजर रहा है बढ़ते कर्ज के कारण हालात श्रीलंका जैसे होने की आशंका स्वयं मुख्यमंत्री व्यक्त कर चुके हैं। ऐसे में क्या इस तरह के खर्चों को जायज ठहराया जा सकता है शायद नहीं। यह ठीक है कि हर सरकार अपना प्रचार-प्रसार चाहती है। हिमाचल में भी यह चलन चल पड़ा है की सरकारें मीडिया मंचों के माध्यम से श्रेष्ठता के तमगे लेने की दौड़ में रहती है और इसके लिए उन समाचार पत्रों या मीडिया चैनलों का सहारा लिया जाता है जिनका प्रदेश में शून्य प्रभाव होता है। अभी जिन समाचार पत्रों और चैनलों को यह विज्ञापन जारी किये गये हैं यदि उनके चुनावी आकलन सही उत्तरते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार कभी न बनती।
यह कड़वा सच है कि जनता की बात करने वाले और सरकार के फैसलों की निष्पक्ष समीक्षा करने वाले सरकार को अच्छे नहीं लगते हैं। ऐसे लोगों को सरकार का विरोधी करार देकर उनकी जबान बन्द करने का प्रयास किया जाता है। उनके विज्ञापन बन्द करके उनके प्रकाशनों को बन्द करवाने का प्रयास किया जाता है। पिछली सरकार के वक्त भी विज्ञापनों की जानकारी मांगने का प्रशन विधायक राजेन्द्र राणा और आशीष बुटेल की हर सत्र में आता रहा है और जयराम सरकार का अन्तिम सत्र तक ‘‘सूचना एकत्रित की जा रही है’’ का जवाब देकर ही प्रश्न टाला है। स्वभाविक है कि किसी प्रश्न का उत्तर लगातार तभी टाला जाता है जब उसमें कुछ घपला हुआ होता है। यह जवाब टालने का ही प्रयास है कि वह सरकार सारे दावों के बावजूद सत्ता से बाहर हो गयी। आज ऐसा लग रहा है कि सुक्खु सरकार की कुछ मामलों में जयराम सरकार के ही पद चिन्हों पर चल पड़ी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण से अधिक नहीं करने की नीति पिछली सरकार की भी थी और यह सरकार उसी पर अमल कर रही है इसलिए भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की फाइलों पर मुख्यमंत्री सचिवालय में भी महीनों तक कोई कारवाई नहीं हो रही है। पिछली सरकार के वक्त विज्ञापनों को लेकर जो सवाल पूछा गया था और जवाब टाला गया यदि उसी मामले की इमानदारी से पड़ताल की जाये तो बहुत कुछ चौंकाने वाला सामने आयेगा।
सूचना और जनसंपर्क विभाग सरकार का अति महत्वपूर्ण विभाग है। क्योंकि सूचना रखना और जन से संपर्क बनाना ही इसका दायित्व है। लेकिन संयोगवश यह विभाग यही काम नहीं कर रहा है। क्योंकि अभी तक भी विभाग में विभिन्न समाचार पत्रों की भूमिका के बारे में स्पष्ट नहीं है। जबकि भारत सरकार ने दैनिक सप्ताहिक समाचार पत्र और वैब पोर्टलों के लिए पीआईबी के माध्यम से कुछ मानक तय कर रखे हैं और छोटे पत्रों के लिये अपनी साइट का होना जरूरी कर रखा है ताकि वह संस्था और मुद्रण कि कुछ बाध्यताओं से मुक्त रह सकें। लेकिन प्रदेश का यह विभाग अभी भी भारत सरकार के मानकों का अनुसरण न करके विज्ञापनों को दण्ड और पुरस्कार के रूप में प्रयोग कर रहा है। यदि यही चलन जारी रहा तो इससे सरकार को ही नुकसान होगा यह तय है।