जब वित्त वर्ष 2022-23 का घाटा ही 1064.35 करोड़ है तो प्रतिमाह इतना कर्ज क्यों?

Created on Monday, 20 February 2023 17:20
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को बने अभी पूरे तीन माह नहीं हुए हैं। लेकिन भाजपा इस सरकार के खिलाफ लगातार आक्रामक होती जा रही है। यह सही है कि भाजपा नेतृत्व केन्द्र से लेकर राज्य तक यह मानकर चल रहा था कि वह किसी भी तरह से सत्ता में पुनः वापसी कर ही लेगा। अधिकांश मीडिया आकलन भी यही संकेत दे रहे थे। शैल की तर्ज पर कम ही लोगों का आकलन था कि सत्ता परिवर्तन निश्चित है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि सत्ता खोने का दंश काफी समय तक चुभता रहेगा। तीन माह का समय किसी भी सरकार को लेकर एक निश्चित राय बनाने के लिए पर्याप्त नहीं कहा जा सकता यह भी एक सच है। लेकिन इस तीन माह के समय में जो घटा है उसे भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसका असर पूरे कार्यकाल तक रहेगा। मोटे तौर पर यदि बात की जाये तो पूर्व की जयराम सरकार पर अत्यधिक कर्ज लेने का आरोप लगता आ रहा है और अब 75000 करोड़ के कर्ज और 11000 करोड़ की देनेदारियों के आंकड़े भी सामने आ चुके हैं। इन आंकड़ों के साये में शायद मुख्यमंत्री को यह कहने की नौबत आयी है कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। मुख्यमंत्री को इस ब्यान के साथ प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर एक श्वेत पत्र जारी करके जनता के सामने सही स्थिति रखनी चाहिये थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका है। शायद जो अफसरशाही वित्तीय कुप्रबन्धन के लिये जिम्मेदार रही है वही आज प्रशासन के शीर्ष पर मौजूद है इसलिये उसने ऐसे प्रयास की राय नहीं दी होगी। इसलिये आज हर फैसले और उसके प्रभाव की जिम्मेदारी इस सरकार को लेनी पड़ेगी। अब तक यह सरकार 4500 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। डीजल पर प्रति लीटर तीन रूपये वैट बढ़ाना पड़ा है। नगर निकाय क्षेत्रों में पानी के रेट बढ़ाने पड़े हैं। बिजली के दाम बढ़ाने की बात चल रही है। खाद्य तेल में दाम बढ़ चुके हैं। विधायक निधि की आखिरी किस्त जारी नहीं हो सकी है। हिमकेयर आदि स्वास्थ्य योजनाओं पर प्रभाव पड़ा है यह आरोप है भाजपा नेतृत्व के। लेकिन सरकार और कांग्रेस की ओर से इन आरोपों का कोई जवाब नही आ रहा है। यह आरोप उस समय गंभीर हो जाते हैं जब सरकार को इस तरह हर माह कर्ज लेना पड़े और उसका कोई जायज कारण भी जनता को न बताया जाये। क्योंकि इस बढ़ते कर्ज के कारण महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती है जो सत्ता परिवर्तन के बड़े कारण रहे हैं। इस सरकार को जनता को दी हुई गारंटीयां पूरी करनी है और इसके लिये पैसा चाहिये। राज्य सरकारों के पास अपनी आय बढ़ाने के साधनों में उत्पादन बढ़ाने, कर लगाने और कर्ज लेने के ही साधन रहते हैं। हिमाचल में सरकार के अपने क्षेत्र में कुछ बिजली उत्पादन हैं। लेकिन सरकार के स्वामित्व वाली योजनाएं रखरखाव के नाम पर जितना समय बन्द रहती है उसके कारण वह लगातार घाटे में चल रही हैं। सरकारी रिपोर्टों को यदि गंभीरता से देखा जाये तो इसमें बड़े घपले के संकेत मिलते हैं। विजिलैन्स में इस आश्य की आयी शिकायत की प्रारंभिक जांच में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है लेकिन जांच को अन्जाम तक नहीं पहुंचाया गया है। शेष योजनाओं में 12% रॉयल्टी देने को ही सरकार बड़ी उपलब्धि मानती है। जबकि इन योजनाओं के ट्रांसमिशन की जिम्मेदारी सरकार की है और इसी ट्रांसमिशन में सारा घाटा हो जाता है। एक बड़ा खेल चल रहा है जिस पर कोई सरकार ध्यान देने को समझने को तैयार नहीं है। इससे भी हटकर यदि बजट दस्तावेजों पर नजर दौड़ा ली जाये तो बड़े सवाल खड़े हो जाते हैं। वर्ष 2020-21, 2021-22 और 2022-23 के दस्तावेज पर नजर डाले तो सामने आता है कि वर्ष 2020-21 में राजस्व घाटा 96.66 करोड़ था जो 2021-22 में 1462.94 करोड़ और 2022-23 में 3903.49 करोड़ हो गया। ऐसा क्यों हुआ इस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। जबकि 2020-21 में राजस्व प्राप्तियां 33438.27 करोड़, 2021-22 में 37027.94 करोड़ और 2022-23 में 36375.31 करोड़ रह गयी क्योंकि केन्द्रीय प्राप्तियों में ही करीब दो हजार करोड़ कम मिले हैं। तय है कि जब जयराम को ही केन्द्र से यह पैसा नहीं मिला है तो सुक्खू को कहां से मिल जायेगा। यदि कुल राजस्व प्राप्तियों और पूंजीगत प्राप्तियों का जोड़ किया जाये तो सरकार को 48300.41 करोड़ मिले हैं। इसी तरह यदि कुल राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय का जोड़ किया जाये तो सरकार का कुल खर्च 49364.76 करोड़ होता है। इस तरह वर्ष के अन्त में केवल 1064.35 करोड़ का घाटा रह जाता है। इस बजट दस्तावेज से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब वर्ष में घाटा ही करीब एक हजार करोड़ का है तो सरकार को प्रतिमाह इतना कर्ज क्यों लेना पढ़ रहा है? इस पर मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री तथा सचिव वित्त को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये। बजट का यह दस्तावेज पाठकां के सामने रखा जा रहा है ताकि आप भी इसे समझ सकें और सवाल उठा सकें।