शिमला/शैल। हिमाचल में विधानसभा चुनाव हारने के बाद प्रदेश भाजपा में इस हार के लिये कुछ वरिष्ट नेताओं को जिम्मेदार ठहराने का एक अप्रत्यक्ष दौर चला था। इसके संकेत पूर्व मन्त्री सुरेश भारद्वाज, राकेश पठानिया नादौन मण्डल के कथित पत्र और पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार के ब्यान कि ‘‘भाजपा को भाजपाईयों ने ही हराया है’’ से सामने आ गये थे। संभवतः इन्ही संकेतों के आधार पर की नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर ने भी यह कहा था कि भीतरघातियों के खिलाफ कारवाई होनी ही चाहिये। इसी परिदृश्य में राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केन्द्रीय मन्त्री अनुराग ठाकुर कुछ लोगों के निशाने पर आ गये थे। यह माना जाने लगा था कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल के संभावित फेरबदल में अनुराग ठाकुर के मन्त्री पद पर आंच आने के साथ ही नड्डा के कार्यकाल में विस्तार की संभावना भी खत्म हो जायेगी। लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद यह सब नहीं हुआ। नड्डा को कार्यकाल में एक वर्ष का विस्तार भी मिल गया और अनुराग ठाकुर को उत्तर प्रदेश के प्रभारी की और जिम्मेदारी मिल गयी। पार्टी में घटे इस सबको 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के परिपेक्ष में देखा जा रहा है। क्योंकि पीछे हुये चुनावों में गुजरात की जीत से ज्यादा हिमाचल और दिल्ली की हार का सन्देश गया है। दिल्ली और हिमाचल के चुनाव प्रदेश के स्थानीय नेताओं से ज्यादा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह के चेहरों पर लड़े गये थे। इस हार से भाजपा के इन राष्ट्रीय चेहरों की लोकप्रियता पर निश्चित रूप से प्रश्न चिन्ह लगे हैं। क्योंकि भाजपा की यह हार उस समय हुयी है जब कांग्रेस के पास भाजपा की नजर में कोई बड़ा चेहरा प्रदेश में नहीं था। इसलिये यह हार जनता की नाराजगी का सीधा प्रमाण है और यह नाराजगी लगातार बनी हुई है।
इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि भाजपा ने हिमाचल में यथास्थिति को ही बनाये रखने में पार्टी के लिये हितकर माना है। इसी हित संरक्षण के तहत पूर्व मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर नेता प्रतिपक्ष बने और नड्डा तथा अनुराग की कुर्सियां बची रही। यह सब लोकसभा चुनावों को सामने रखकर किया गया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या इससे सही में भाजपा को चुनाव में लाभ मिल पायेगा। इसका आकलन करने के लिये सरकार और भाजपा की वर्तमान स्थिति पर नजर डालना अवश्य हो जाता है। सरकार ने जयराम काल के अंतिम छः माह के फैसले पलटे हैं। भाजपा की ओर से इन फैसलों के खिलाफ दो याचिकाएं प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर की गयी हैं। इसके बाद सुक्खू सरकार ने छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां करके एक नया मुद्दा खड़ा कर दिया है। क्योंकि एक समय प्रदेश उच्च न्यायालय इन्हें असंवैधानिक करार दे चुका है और उसके बाद बनाया गया अधिनियम भी उच्च न्यायालय में लंबित है। लेकिन इसी के साथ सुक्खू सरकार ने डीजल पर तीन रूपये प्रति लीटर वैट बढ़ाकर लोगों पर महंगाई का बोझ डाल दिया है। भाजपा और जयराम ने इस बढ़ौतरी का विरोध करते हुये यह खुलासा किया है कि जयराम की सरकार ने नवम्बर 2021 में पेट्रोल और डीजल के दामों में कमी की थी। डीजल के रेट 17 रूपये प्रति लीटर घटाये गये थे। सुक्खू सरकार ने जयराम कार्यकाल में डीजल के घटाये गये दामों को पिछले छः माह में लिया गया फैसला करार देते हुये इसे भी पलटने का काम किया है। ऐसे में अब यह बहस एक रोचक विषय बन जायेगी कि सुक्खू सरकार में नवम्बर 2021 में लिये गये जनलाभ के फैसले को संसाधन जुटाने के नाम पर बदला है और फिर गलत ब्यानी भी की जा रही है।
सुक्खू सरकार के इन फैसलों के खिलाफ भाजपा 25 जनवरी से 15 फरवरी तक पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करने जा रही है। नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमन्त्री जय राम ठाकुर इन प्रदर्शनों की अगुवाई करेंगे। यह प्रदर्शन हर उस स्थान पर किये जायेंगे जहां-जहां यह संस्थान खुले थे और इस सरकार ने बन्द किये हैं। स्वभाविक है कि जो लोग इन फैसलों से प्रभावित हुये हैं वह विरोध में हस्ताक्षर करने से पीछे नहीं हटेंगे। 15 फरवरी तक यह विरोध प्रदर्शन चलेगा और उसके बाद पूरे बजट सत्र में यह मुद्दा गूंजता रहेगा। सरकार और कांग्रेस की ओर से इस विरोध प्रदर्शन का कितना प्रमाणिक जवाब दिया जायेगा यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद जब ‘‘हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा’’ जिस दिन से शुरु करेगी उसी दिन से भाजपा की यह विरोध यात्रा शुरू होगी। भाजपा के पास लोगों में जाने के लिये सरकार के यह फैसले हैं। कांग्रेस और भाजपा इस संयोग में आमने-सामने की स्थिति में आ खड़े होंगे। कांग्रेस का संगठन सुक्खू सरकार के फैसलों की रक्षा जनता में कैसे कर पाता है यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि ऐसा बहुत कम देखने को मिला है कि सत्ता परिवर्तन के बाद बनी सरकार के पहले फैसले पर पहले ही दिन विपक्ष हमलावर हो जाये और उसके मुद्दों में वजन भी हो।