क्या सुक्खू सरकार किसी साजिश का शिकार हो रही है

Created on Monday, 19 December 2022 13:32
Written by Shail Samachar

मंत्रिमण्डल के गठन और कुछ अन्य फैसलों में हो रही देरी से उठने लगी चर्चा

शिमला/शैल। सुखविंदर सिंह सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री ने ग्यारह दिसम्बर को मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री पदों की शपथ ग्रहण की थी। लेकिन अभी तक यह सरकार मंत्रिमण्डल का गठन नहीं कर पायी है। बल्कि महाधिवक्ता और मुख्यमंत्री कार्यालय में भी नयी नियुक्तियां नहीं हो पायी हैं। यह नियुक्तियां मुख्यमंत्री के पद ग्रहण करने के साथ ही हो जाया करती हैं जो अभी तक नहीं हो पायी हैं। नयी सरकार का अब तक एक ही महत्वपूर्ण फैसला आया है जिसमें पूर्व सरकार द्वारा पिछले छः माह में लिये गये फैसलों को अभी स्थगित करते हुए उनकी समीक्षा किये जाने की बात की है। अभी जो यह कहा गया है कि प्रशासनिक तबादलें इस सरकार की प्राथमिकता नहीं है उसके राजनीतिक संद्धर्भों में कोई बड़े मायने नहीं है क्योंकि प्रशासन में रद्दोबदल के बिना नया संदेश जा ही नहीं पाता है यह एक स्थापित नियम और चलन है। यह भी एक स्थापित नियम है कि जिन फैसलों में जितना लम्बा समय लिया जाता है उनका संदेश भी उतना ही धीमा हो जाता है। यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक हो जाता है कि इस सरकार के विपक्ष में भाजपा है जिसने चुनाव से पहले ही प्रदेश कांग्रेस में सेन्धमारी की सफल शुरुआत कर रखी हैं और स्वभाविक है कि वह सरकार को असफल करने के लिये किसी भी हद तक जाने से पीछे नहीं हटेगी। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष तथा उनका आईटी प्रकोष्ठ जिस तरह से प्रतिक्रियाएं सरकार को लेकर देने लग गये हैं उससे यह संकेत पूरी स्पष्टता के साथ सामने आ जाते हैं। इन आशंकाओं को समझने के लिए चुनाव से पहले और चुनाव परिणामों के बाद जो कुछ कांग्रेस में घटा है उस पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। चुनाव से पहले कुछ नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गये। आनन्द शर्मा और रामलाल ठाकुर जैसे नेताओं ने चुनाव के दौरान अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर दी। इन सभी के आरोप एक ही तर्ज पर रहे हैं। चुनाव के दौरान यदि कांग्रेस कार्यालय को स्व.वीरभद्र सिंह के कुछ विश्वसतों ने न संभाला होता तो तभी यह कार्यालय शायद बिखर जाता। क्योंकि कुछ बड़े नेताओं के अहम तभी टकराव पर आ गये थे। इस टकराव से ही स्पष्ट हो गया था कि मुख्यमंत्री के चयन में किसी एक नाम पर आसानी से सहमति नहीं बन पायेगी। नेता के लिये प्रतिभा सिंह, सुखविंदर सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री की दावेदारी सामने आ गयी। सभी के समर्थकों की संख्या भी शायद बराबर बराबर रही है। बल्कि इनके अतिरिक्त कांगड़ा से चन्द्र कुमार का नाम भी चर्चा में रहा है। कांग्रेस विधायकों की बैठक के बाद यह सामने आया कि सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री तथा मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य सिंह दो उप मुख्यमंत्री होंगे। इस आश्य के समाचार सोशल मीडिया मंच पर प्रसारित हुये। लेकिन शपथ ग्रहण में विक्रमादित्य सिंह का नाम गायब हो गया। नाम के आने और फिर गायब होने को लेकर पार्टी या पर्यवेक्षकों का कोई अधिकारिक बयान तक नहीं आया। इस दौरान जब राज्यपाल से पहली बार भेंट के लिये कांग्रेस नेता गये उसने प्रतिभा सिंह शामिल नहीं थी। इस पर उनकी प्रतिक्रिया भी सोशल मीडिया में आ गयी थी। इसके बाद विक्रमादित्य सिंह का परिवारिक मामला जिस तरह से समाचारों का विषय बना उससे भी कोई अच्छा संदेश नहीं गया। क्योंकि इस प्रकरण का पूरा अर्थ और संद्धर्भ ही बदल दिया गया। इसमें राजनीति की गन्ध पूरी स्पष्टता से सामने आ गयी है। इसी राजनीति के कारण मंत्रीमण्डल का गठन नहीं हो पा रहा है। यह एक स्वभाविक सत्य है कि जिन फैसलों में वक्त लम्बा होता जाता है उनमें उलझने बढ़ती चली जाती है। प्रशासनिक स्तर पर भी फेरबदल में समय लम्बा होता जा रहा है। पिछली सरकार द्वारा पिछले छः माह में लिये गये फैसलों के अमल पर जब रोक लगाई गयी तो यह सामने आया कि इन फैसलों के लिए वांच्छित प्रशासनिक और वित्तीय अनुमतियां नहीं ली गयी थी बल्कि बजट ही नहीं होने की बात भी सामने आयी। स्वभाविक है कि जब यह फैसले लिए गये थे तब यही प्रशासन और वित्त विभाग था। तब यह कभी सामने नहीं आया कि इस प्रशासन ने किसी फैसले का लिखित में विरोध किया हो। आज जब उसी प्रशासन से उसी के फैसले पर रोक लगायी जा रही है तब उस प्रशासन को लेकर क्या धारणा बनती है? यही प्रशासन नयी सरकार के सामने कितनी ईमानदारी से अपने ही बारे में सही स्थिति रख पायेगा। पिछली सरकार पर कांग्रेस ने अपने आरोप पत्र में कई गंभीर आरोप लगा रखे हैं। उन आरोपों पर इसी प्रशासन द्वारा कितनी इमानदारी से जांच की उम्मीद की जा सकती है। प्रशासन की इन तकनीकियों के कारण ही शीर्ष प्रशासन में तुरन्त प्रभाव से फेरबदल किये जाने की आवश्यकता होती है। लेकिन इसमें भी जितना समय लगता जा रहा है उससे इन्हीं लोगों को अपने पक्ष में लॉबिंग करने का समय मिलता जा रहा है और उसी से नई सरकार के खिलाफ साजिश की गन्ध आने लगी है।