कौन होगा कांग्रेस में मुख्यमंत्री अटकलों का बाजार हुआ गर्म

Created on Tuesday, 22 November 2022 18:19
Written by Shail Samachar

क्या नेतृत्व की रेस में अहम टकरायेगे?

क्या वरियता को अधिमान मिलेगा?

शिमला/शैल। कौन होगा कांग्रेस में अगला मुख्यमंत्री प्रशासनिक गलियारों से लेकर राजनीतिक दलों के कार्यालयों तक में यह सवाल इन दिनों सबसे अधिक अटकलों का केन्द्र बना हुआ है। क्योंकि प्रशासन के शीर्ष पर बैठे जिन अधिकारियों के पास दिन में दो-दो बार फील्ड से फीडबैक आता है उनके एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस के सम्भावित मुख्यमन्त्रीयों के यहां दस्तक देना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि जयराम सरकार में जिस अधिकारी ने मुख्य सचिव के पद तक सात अधिकारियों को पहुंचा कर प्रशासनिक स्थिरता की बलि ले ली और मुख्यमन्त्री को इस बारे में सचेत तक होने का अवसर नहीं दिया उसी अधिकारी ने अपने पयादो के साथ यह खेल खेलना शुरू कर दिया है। चर्चा तो यहां तक है कि इनकी हाजिरी का प्रमाण किसी ने फोटो के साथ जयराम को भी भेज दिया। यह फोटो देखकर जयराम ठाकुर की प्रतिक्रिया क्या रही होगी इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। यह एक स्थापित सच है कि जब जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहे उसे छोड़ कर भागना शुरू करते हैं। सत्ता परिवर्तन के यह अच्छे संकेत हैं। लेकिन इन्हीं संकेतों का दूसरा पक्ष उतना ही गंभीर है। क्योंकि भाजपा में इन चुनावों के लिए जयराम से ज्यादा प्रधानमन्त्री, गृह मन्त्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सभी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठाएं दांव पर लगी हुई है। गैर भाजपा शासित कितने राज्यों में ऑपरेशन लोटस चलाकर सरकारें गिराने के प्रयास हो चुके हैं यह पूरा देश जानता है। ऐसे में जहां अभी चुनाव चल रहे हैं उन राज्यों में सत्ता के लिए भाजपा किसी भी हद तक जाने का प्रयास कर सकती हैं इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मतदान और मतगणना के बीच रखा गया लम्बा अन्तराल कई आशंकाओं की ओर संकेत करता है। रामपुर और घुमारवीं में ईवीएम मशीनों को लेकर सामने आई आशंकाओं को यदि कांग्रेस का आधारहीन डर भी मान लिया जाये तो उना में चुनाव आयोग को इन मशीनों की पहरेदारी के लिए स्वयं टैन्ट लगाकर क्यों बैठना पड़ा यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शायद चुनाव आयोग के पास भी नहीं है।
इस परिदृश्य में जब कांग्रेस के अंदर यह सवाल उठा ही दिया गया है कि उसका मुख्यमन्त्री कौन होगा तब यह भी साथ ही याद रखना होगा कि नेतृत्व का यह सवाल स्वयं प्रधानमन्त्री तक कांग्रेस पर दाग चुके हैं। उससे यह संकेत स्पष्टतः उभरते हैं कि आने वाले दिनों में नेतृत्व के प्रशन को आन्तरिक विरोधाभासों को उभारने का एक बड़ा माध्यम बनाया जाएगा। क्योंकि अभी प्रदेश कांग्रेस में स्थापित नेतृत्व उभरने में समय लगेगा। वर्तमान में कांग्रेस के अन्दर अभी ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं है जो अपने चुनाव क्षेत्र से बाहर भी अपना वोट किसी के पक्ष में ट्रांसफर करने की बूकत रखता हो। विश्लेषकों की नजर में इसी के कारण कांग्रेस के दो विधायक और दो कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी छोड़कर भाजपा में गये हैं। इसी के साथ एक सच यह भी है कि कांग्रेस को उपचुनाव से लेकर इन आम चुनाव तक स्व. वीरभद्र सिंह के प्रति जनता के प्यार और सहानुभूति का भरपूर लाभ मिला है। प्रतिभा सिंह को इन परिस्थितियों में पार्टी का अध्यक्ष बनाना भी एक सही फैसला रहा है। क्योंकि प्रतिभा सिंह के कारण ही वीरभद्र सिंह के विश्वस्त रहे सेवानिवृत्त अधिकारियों और दूसरे लोगों ने चुनाव के दौरान पार्टी कार्यालय को संभाल लिया। कांग्रेस जो आरोप पत्र नहीं ला पायी थी उसे इन्हीं लोगों ने चुनाव प्रचार के दौरान जनता तक पहुंचाया। भाजपा शायद यह मानकर चल रही थी कि जब उसने नेता प्रतिपक्ष और चुनाव कैंपेन कमेटी के चेयरमैन को प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री की रैलियां रखवाकर उनके चुनाव क्षेत्रों में ही बांध कर रख दिया तो इसका सीधा असर कांग्रेस कार्यालय पर पड़ेगा। लेकिन वीरभद्र के विश्वस्त रहे इन अधिकारियों ने संगठन के पदाधिकारी हुए बिना ही कार्यालय को संभाल कर भाजपा की रणनीति पर ग्रहण लगा दिया। इसी प्रबन्धन के दम पर प्रतिभा सिंह पैंतालीस और विक्रमादित्य, मुकेश और सुक्खु दस-ग्यारह रैलियां विभिन्न क्षेत्रों में कर पाये।
यह सही है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का संगठन बहुत कमजोर था। धनबल में भी कांग्रेस भाजपा के बराबर नहीं थी। लेकिन जनता जिस कदर महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित थी उसके चलते जनता सत्ता परिवर्तन के लिए मन बना चुकी थी। ऐसे में कांग्रेस को जनसमर्थन मिलने जा रहा है वह जनता का रोष पोषित विश्वास है। इस विश्वास को यदि कोई भी मुख्यमन्त्री होने के अहम में कमजोर करने का प्रयास करेगा उसे जनता बर्दाशत नहीं करेगी। स्व. वीरभद्र के प्रति जनता की सहानुभूति का लाभ अब के बाद नहीं मिलेगा। ऐसे में यदि विधायकों के बहुमत को नजरअंदाज करके मुख्यमन्त्री थोपने का प्रयास किया जायेगा तो उसके परिणाम घातक होंगे। क्योंकि कांग्रेस के पास अनुभवी विधायकों की लम्बी लाइन उपलब्ध रहेगी ऐसा माना जा रहा है।