क्या आप इस चुनाव में अपने को प्रमाणित कर पायेगी
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Created on Wednesday, 16 November 2022 12:30
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। देश के दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में आप की सरकारें हैं। इन्हीं सरकारों के दम पर आप नेे हिमाचल में भी चुनाव लड़ने का दम भरा और 67 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। पंजाब में सरकार बनने के बाद जिस जोश और उम्मीद के साथ आप ने प्रदेश में कदम रखा था वह चुनाव के अन्त तक बना नहीं रह सका है। बल्कि अन्त तक आते-आते यह सवाल अहम हो गया कि आप प्रदेश में इतना वोट शेयर ले पायेगी जिसके सहारे वह राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्तकर पाये। आप को लेकर यह चर्चा उठाना इसलिये आवश्यक हो जाता है क्योंकि आप भी अन्ना आन्दोलन की कोख से निकली है। आप के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली एक जैसी ही है। दोनों नेता मीडिया के सहारे ज्यादा प्रचारित हैं जबकि जमीनी हकीकत वास्तविकता से बहुत दूर है। आज पंजाब में आम आदमी पार्टी को बिजली की दरों में बढ़ौतरी करनी पड़ी है और इस बढ़ौतरी पर हिमाचल तक में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। आम आदमी में आप की मुफ्ती योजनाओं को लेकर एक समय जो सवाल उठे थे उनका सच इस बढ़ौतरी से सामने आ गया है। इन्ही चुनावों में कजरीवाल ने करंसी नोटों पर लक्ष्मी और गणेश के चित्र छापने का हिन्दु कार्ड प्ले करने का प्रयास किया और उस पर सवाल उठे। इसी हिन्दु कार्ड के नाम पर आप विलकिस बानो प्रकरण पर मौन रही। इन्हीं कारणों से आप पर संघ प्रायोजित भाजपा की बी टीम होने के आरोप लगते आ रहे हैं।
हिमाचल में आप की परफॉरमैन्स नहीं के बराबर मानी जा रही है। लेकिन आप को पंजाब और दिल्ली में इसकी सरकारें होने से आसानी से राइट ऑफ भी नहीं किया जा सकता है। यह माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आप अपरोक्ष में भाजपा की सहायक सिद्ध होगी जैसा कि इस चुनाव में हुआ है। भाजपा की अपरोक्ष सहायक होने के कारण ही आप अभी तक विपक्षी एकता का हिस्सा नहीं बन पा रही है। आप के इस राजनीतिक चरित्र के परिदृश्य में यह सवाल उठाये जाने आवश्यक हो जाते हैं कि हिमाचल में जिन तेवरों के साथ आप ने प्रदेश में कदम रखा था उसको अन्त तक निभाया क्यों नहीं गया? क्या आम आदमी का दम भरने वाली आप भी भाजपा या कांग्रेस में सेन्धमारी करके वहां से कोई बड़े नाम इम्पोर्ट करके आगे बढ़ना चाहती है। आज हिमाचल के संद्धर्भ में आप से जुड़े कार्यकर्ताओं को अपने नेतृत्व से यह सवाल पूछना आवश्यक हो जाता है कि प्रदेश को लेकर उनकी नीयत क्या है क्योंकि 2024 के चुनावों के परिदृश्य में यह महत्वपूर्ण हो जाता है।