शिमला/शैल। आज हिमाचल ही नहीं वरन देश के उन 21 राज्यों के कर्मचारी पुरानी पैन्शन योजना पुनः बहाल करने की मांग कर रहे हैं। कुछ गैर भाजपा शासित राज्यों ने इसे बहाल भी कर दिया है। छत्तीसगढ़ की तर्ज पर अब पंजाब में इसे बहाल करने का फैसला कर लिया है। हिमाचल के चुनावों में कांग्रेस ने दस गारंटियों में इसे पहला स्थान दिया है और सरकार बनने पर मंत्रिमण्डल की पहली ही बैठक में इसे लागू करने का वायदा भी कर दिया है। लेकिन भाजपा इस मुद्दे पर अभी भी असमंजस में चल रही है। बल्कि कुछ कर्मचारी नेता पुरानी पैन्शन योजना खत्म करने का आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं। इस समय यह मुद्दा केन्द्रिय मुद्दा बन चुका है। इसलिये पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ इसे जनता के बीच रखा जाना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इसके प्रभाव दुरगामी होंगे। स्मरणीय है कि 1999 में प्रदेश में भी और केन्द्र में भी भाजपा की सरकारें थी। बल्कि केन्द्र में तेरह दिन तेरह महीनों के बाद मार्च 1999 में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी और इस सरकार में अरुण शोरी के अधीन पहली बार देश को विनिवेश मंत्रालय देखने को मिला था। यह विनिवेश मंत्रालय भाजपा का एक नीतिगत फैसला था। स्वभाविक था कि जब भी इस फैसले के तहत सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी निवेश को घटाया जाता तो इसका सीधा प्रभाव कर्मचारियों पर पड़ता। इसलिये केन्द्र ने सभी विशेष श्रेणी राज्यों सहित 21 राज्यों के साथ एमओयू साइन किया जिसकी हर शर्त कर्मचारियों को प्रभावित करती थी। उस समय कुछ गैर भाजपा शासित राज्यों ने इसे साइन करने से मना भी कर दिया था। लेकिन हिमाचल की भाजपा सरकार ऐसा नहीं कर पायी।
2003 में जब प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बन गयी तब यह मुद्दा फिर उठा क्योंकि 1999 में हुये एमओयू को ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया था। तब वीरभद्र सरकार ने मई 2004 में बड़े प्रयत्नों से केंद्र के साथ एक नया एमओयू साइन करके पुराने में कुछ संशोधन करवाये। इन संशोधनों के बाद भाजपा ने अपने ऊपर लग रहे कर्मचारियों की पैन्शन खत्म करने के आरोप को कांग्रेस के नाम लगाना शुरू कर दिया। विधानसभा के अन्दर इस पर भारी हंगामा हुआ था। तब सरकार ने इन समझौता ज्ञापनों का सच जनता के सामने रखा। इसके लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने दिसम्बर 2004 में ‘‘समझौता ज्ञापन तथ्य क्या है ?’’ नाम से एक लघु पुस्तिका प्रकाशित की थी। इस पुस्तिका में सारे तथ्य दर्ज हैं। अप्रैल 1999 में क्या साईन हुआ था मार्च 2004 में क्या साईन हुआ था दोनों ज्ञापन इसमें दर्ज हैं। इनको पढ़े बिना यह आरोप लगाना सही नहीं होगा की कौन सी सरकार कर्मचारियों की हितैशी रही है। आज शायद राजनेता और कर्मचारी नेता दोनों को ही इस समझौता ज्ञापन की जानकारी नहीं है। इसलिये इस समझौता ज्ञापन का दस्तावेज पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि इतने संवेदनशील मुद्दे पर आप अपनी राय बना सकें।