तीन वर्षों में नहीं मिला एक भी पैसा
तीन वर्षों में बजट अनुमानों के मुकाबले करीब 40 हजार करोड़ ज्यादा खर्च
क्या यह खर्च पूरा करने के लिए लिया गया कर्ज अकेले चुनावी वर्ष 2019-20 में है अनुमान और वास्तविक खर्च में 27000 करोड़ का अंतर
शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक पखवाड़े में दो बार हिमाचल आ गये हैं। पहले शिमला में 31 मई को मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार के 8 वर्ष पूरा होने पर आये। जिस गरीब कल्याण सम्मेलन को संबोधित किया इस सम्मेलन में प्रदेश भर से सरकारी योजना को लाभार्थियों को बुलाया गया था। सम्मेलन अच्छा हुआ। लेकिन कर्ज के चक्रव्यू में ही से प्रदेश को उबारने के लिए कोई आर्थिक सहायता नहीं दे गये। बल्कि जिस तरह से अपने सहयोगी मंत्री अनुराग ठाकुर का अपने संबोधन में नाम तक भी नहीं लिया वह खबर भी बना और राजनीतिक चर्चा का विषय भी बना। शिमला के बाद 15 से 17 जून तक धर्मशाला में राज्यों के मुख्य सचिवों के पहले सम्मेलन को दो-दिन का समय दे दिया। इस सम्मेलन में भी अनुराग ठाकुर का शिमला ही की तरह नजरअंदाज होना फिर खबर बना। लेकिन इस सम्मेलन में शामिल होने के लिये आते समय हवाई अड्डे के बाहर अग्निपथ योजना से आक्रोशित युवाओं का आक्रोश भी झेलना पड़ा। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री के स्वागत के लिये सरकार और संगठन ने पन्द्रह हजार से ज्यादा भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था। इसके लिये कांगड़ा चंबा के सारे विधायकों और दूसरे नेताओं को संगठन की ओर से लक्ष्य दिये गये थे। लेकिन सम्मेलन में पन्द्रह हजार की जगह पांच हजार ही जुट पाये। केवल देहरा के होशियार सिंह और नूरपुर के राकेश पठानिया ही अपना लक्ष्य पूरा कर पाये अन्य नेता नहीं। इस सम्मेलन में भी प्रधानमंत्री प्रदेश को कुछ देकर नहीं गये। क्योंकि यह मुख्य सचिवों का सम्मेलन था। लेकिन यहां पर तय लक्ष्य पन्द्रह हजार की जगह पांच हजार की भीड़ का ही जुट पाना अपने में कई सवाल खड़े कर गया है। क्योंकि कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और सरकार बनाने का रास्ता यहीं से निकलता है। एक अरसे से कई कांग्रेस नेताओं के नाम उछलते रहे हैं कि वह भाजपा में शामिल हो रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और अब पलटकर यह चर्चा भाजपाईयों के ही गिर्द आती जा रही है। कांगड़ा में जब केजरीवाल आये थे तब उन्हें घेरने के लिये कोई भाजपाई सामने नहीं आ पाया और यह काम मेजर मनकोटिया से करवाना पड़ा। अब प्रधानमंत्री के आगमन पर माना जा रहा था कि मनकोटिया भाजपा में शामिल हो जायेंगे। मोदी के स्वागत में मनकोटिया द्वारा एक दैनिक में जारी किया गया विज्ञापन इसका संकेत माना जा रहा था। लेकिन मोदी के आगमन पर अग्निपथ से आक्रोशित युवाओं के आक्रोश ने मनकोटिया के पावं फिर जकड़ दिये। इसी के साथ इस सम्मेलन में भी अनुराग ठाकुर की अनदेखी को लेकर बनी खबरों ने प्रदेश की सियासत को फिर से हिला कर रख दिया है। यह चर्चा चल पड़ी है कि मोदी द्वारा पीठ थपथपाने से ही सत्ता की वापसी का रास्ता नहीं खुल जायेगा। यह वापसी जय राम के काम पर निर्भर करेगी। जयराम के काम पर अब तक आयी कैग रिपोर्ट जो स्वाल उठाये हैं उनका जवाब अभी तक नहीं आ पाया है। बल्कि केंद्रीय सहायता के दावों को लेकर तो स्थिति बहुत ही हास्यास्पद हो गयी है क्योंकि मोदी से लेकर नड्डा, जय राम तक सभी के लाखों से हजारों करोड़ केंद्र द्वारा प्रदेश को दिये जाने के दावे किये हैं। लेकिन यह 31 मार्च 2020 तक की आयी कैग रिपोर्ट ने इन दावों के झूठ की पोल खोल कर रख दी है। कैग के मुताबिक 2015-16 से 2019-20 तक चार मदो गैर योजना गत अनुदान, राज्य की स्कीमों हेतु अनुदान, केंद्रीय स्कीमों हेतु अनुदान और केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों हेतु अनुदान में राज्यों को एक पैसा भी नहीं मिला है। जबकि 2015-16 और 2016-17 में मिला है। तब भी केंद्र में मोदी की ही सरकार थी। आज प्रदेश पर जो 70 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज हो गया है उसके लिये केंद्र कि इस बेरूखी को भी कारण माना जा रहा है। इन तीन वर्षों में सरकार के अनुमानित बजट और वास्तविक खर्च हुये बजट में करीब 40 हजार करोड़ का अंतर है। अकेले 2019-20 के खर्च में ही 27 हजार करोड़ का फर्क रहा है। क्योंकि इसी वर्ष लोकसभा के चुनाव भी हुये हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि अनुमानों से अधिक खर्च करना पड़ा है सरकार को। यह खर्च पूरा करने के लिये जब केंद्र ने कुछ नहीं दिया तो स्वाभाविक रूप से कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प सरकार के पास नहीं बचा था। शायद इसी कारण से 100 से अधिक स्कीमों पर सरकार एक भी पैसा खर्च नहीं कर पायी है। कैग रिपोर्ट के इस खुलासे पर सरकार कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं कर पायी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब 69 राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर लाखों हजारों करोड़ की केंद्र से सहायता मिलना जुमलो से अधिक कुछ नहीं रहा है तो फिर सत्ता में वापसी के दावे क्या ईवीएम के भरोसे किये जा रहे हैं।