क्या प्रधानमंत्री या दूसरे केन्द्रीय नेताओं की यात्राओं से प्रदेश का चुनावी परिदृश्य बदल जायेगा

Created on Tuesday, 31 May 2022 18:10
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। क्या प्रधानमंत्री की शिमला यात्रा से ही भाजपा की चुनावी वैतरणी पार हो जायेगी? यह सवाल आज प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक बड़ा सवाल बनकर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। क्योंकि यह एक कड़वा सच है कि प्रदेश के चारों उपचुनाव हारने के बाद जो फजीहत जयराम सरकार की हुई है उससे वह उभर नहीं पायी है। पांच राज्यों में हुये विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार से भाजपा का जो मनोबल थोडा संभाला था उसे प्रदेश में घटे पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक और बेच प्रकरण ने फिर से रसातल में पहुंचा दिया है। इसी प्रकरण के बाद चम्बा में विधानसभा उपाध्यक्ष द्वारा स्कूल के छात्रा को थप्पड़ मारने का मामला घट गया। देहरा के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने जिस भाषा में जनता के बीच ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र कंवर और पूरी सरकार को कोसा है उससे हुये नुकसान की भरपाई मुख्यमंत्री द्वारा विधायक का अभिवादन स्वीकार न करने से नहीं हो जाती है। क्योंकि यही विधायक कल तक मुख्यमंत्री और सरकार के कितने निकट और विश्वस्त रहे हैं। यह देहरा में आईपीएच मंत्री के एक प्रोग्राम में सामने आ चुका है। भाजपा में आंतरिक गुटबाजी कितनी ज्यादा रही है इसका खुलासा कांगड़ा में रमेश ध्वाला बनाम पवन राणा और फिर सरवीन चौधरी विवादों तथा ईन्दू गोस्वामी के पत्रों से सामने आ ही चुका है। 2017 के चुनावों में धूमल के खिलाफ षडयंत्र रचा गया था। यह अब धूमल द्वारा जांच की मांग करने और उसे नड्डा द्वारा इंकार कर दिये जाने से भी स्पष्ट हो चुका है। नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं कोर कमेटी की विस्तारित बैठक से शुरू हुई थी। इस बैठक के बाद यह बराबर कहा गया कि कुछ मंत्रियों को हटाया जा सकता है और कुछ के विभागों में फेरबदल हो सकता है। इन्हीं चर्चाओं में बिंदल से प्रदेश अध्यक्षता और स्पीकर शीप छीन गयी। परमार से स्वास्थ्य मंत्री का पद ले लिया गया। कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे जाने की खबरें आये दिन उछलती रहती हैं। कैसे और कितने लोग पत्र बम्बों के शिकार हुये हैं। यदि पार्टी में घटे इस सब को एक साथ जोड़ कर देखा और समझा जाये तो कोई भी विश्लेषक यह मानेगा की पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। आम आदमी पार्टी की आमद नेे भी भाजपा और जयराम सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। इसीलिए नड्डा और अनुराग को मैदान में उतारा गया। अनुराग ने आप की प्रदेश इकाई के शीर्ष नेतृत्व को ही तोड़कर भाजपा में शामिल करवा दिया। नड्डा ने रैलियां की। युवा मोर्चा का राष्ट्रीय कार्यक्रम धर्मशाला में आयोजित किया गया। यह क्यास लगायेे जा रहे थे कि कांगड़ा से कांग्रेस के कुछ नेता भाजपा में शामिल हो जाएंगे। कई नाम चर्चा में भी आये लेकिन अंतिम परिणाम शून्य रहा। फिर त्रिदेव सम्मेलन में स्मृति ईरानी को बुलाया गया यहां पर भाजपा के इन त्रिदेवों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संज्ञा दे दी गई। लेकिन इस प्रयास के परिणाम भी शुन्य रहे। क्योंकि लोग महंगाई और बेरोजगारी से इस कदर तंग आ चुके हैं कि भाजपा के किसी भी प्रयास का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। आप की तर्ज पर जयराम भी मुफ्त बिजली और पानी देने की घोषणाएं कर चुके हैं। इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए कर्ज़ का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद लोग यह नहीं भूल पा रहे हैं कि प्रदेश बेरोजगारी में देश के टॉप छः राज्यों में से एक हो गया है। जयराम सरकार और भाजपा इसी सब के चलते आज नगर निगम शिमला के चुनाव करवाने का साहस नहीं कर पा रही है। ऐसा पहली बार हुआ है की सरकार के पक्ष में कुछ भी सकारात्मक न हो। इसी परिदृश्य में प्रधानमंत्री अपनी सरकार के आठ साल पूरा होने पर गरीब कल्याण योजनाओं के नाम से शिमला आ रहे हैं। जयराम सरकार ने भी यह बड़े गर्व से दावा किया है कि इस अवसर के लिए शिमला का चुनाव स्वयं प्रधानमंत्री ने किया है। प्रधानमंत्री इस अवसर पर प्रदेश को क्या देकर जाते हैं इसका पता तो बाद में ही चलेगा। लेकिन इस अवसर पर यह सवाल आवश्यक उछलेंगे कि मोदी सरकार का पहला बड़ा आर्थिक फैसला नोटबंदी का था जिसमें 99.6% पुराने नोट नये नोटों से बदले गये हैं। 0.4% इसलिये रहे कि नेपाल में नोटबंदी प्रभावी नहीं हुई। नोटबंदी से जाली नोटों के छपने पर लगाम लगेगी यह दावा किया गया था। लेकिन अब रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में माना गया है कि अब भी जाली नोट छप रहे हैं। इसके आंकड़े तक जारी किये गये हैं। 2014 में आम जमा पर जो ब्याज मिलता था वह आज 2022 में आधे से भी कम रह गया है। जीरो बैलेंस के नाम पर खोले गये खातों पर न्यूनतम बैलेंस की शर्त क्यों लगायी गई? क्या इससे गरीब आदमी प्रभावित नहीं हुआ है? हिमाचल सरकार के अपने ही आंकड़ों के अनुसार 65% लोग मुफ्त मिले गैस सिलेंडर दूसरी बार नहीं भरवा पाये हैं। स्कूलों में बच्चों को दिये जाने वाले मिड डे मील के लिये फरवरी के बाद कोई किस्त जारी नहीं हो सकी है। मनरेगा में भी नये साल में कोई बजट जारी नहीं हो पाया है। इस वस्तुस्थिति में प्रधानमंत्री का शिमला में लगातार बैठा रहना भीं सरकार को डूबने से नहीं बचा पायेगा यह माना जा रहा है।