कांग्रेस में हुए बदलाव ने बढ़ाई सरकार और भाजपा की चिंताएं भाजपा की प्रतिक्रियाओं से हुआ स्पष्ट

Created on Monday, 02 May 2022 07:34
Written by Shail Samachar

कुलदीप राठौर को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाना संतुलन साधने का परिचय
अब मुद्दों पर सरकार और भाजपा को घेरना होगी प्रतिभा की परीक्षा

शिमला/शैल। प्रतिभा सिंह को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर हाईकमान ने अध्यक्षता को लेकर उठते सवालों पर विराम लगा दिया है। यह विराम लगाने के साथ ही निवर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर न केवल उनके मान-सम्मान को ही बहाल रखा बल्कि उन्हें बड़ी भूमिका देकर उनके अनुभव को भी अधिमान दिया है। दोनों नेता अपनी जिम्मेदारियों पर कितने सफल रहते हैं यह आने वाला समय ही बतायेगा। प्रतिभा सिंह के साथ ही नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री को फिर से प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के लिये उन पर पूर्ण विश्वास बहाल करके एक बड़ा संकेत भी दे दिया है। पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाकर पूरे चुनाव के संचालन की जिम्मेदारी देकर उनके अनुभव को भी पूरा अधिमान दिया गया है। इन्हीं के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर भविष्य के नेतृत्व के प्रति भी हाईकमान ने सजगता और सतर्कता दोनों का परिचय दे दिया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हाईकमान ने हर नेता के मान सम्मान को पूरी तरह बहाल रखा है।
प्रदेश कांग्रेस में हुये इस बदलाव पर जिस तरह की प्रतिक्रिया है सत्तारूढ़ भाजपा से आई हैं उन्हीं से प्रमाणित हो जाता है कि सरकार और संगठन दोनों में एक डर अभी से बैठ गया है। क्योंकि इसी कांग्रेस ने पिछले चारों उपचुनाव में ने इसी भाजपा और सरकार को हराया है। उस समय इसी भाजपा ने इस हार को स्व. वीरभद्र सिंह के पक्ष में उभरी श्रद्धांजलि की लहर करार देकर अपनी हाईकमान को एक जवाब दे दिया था। लेकिन यह भूल गयी थी कि इसी जनभावना को भुनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान को इसी विरासत को भुनाने के लिये एक बार फिर इसी परिवार पर विश्वास व्यक्त करना पड़ेगा। यह इसी विरासत का परिणाम रहा है कि प्रदेश के लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में इस बदलाव का स्वागत किया गया है। ऐसा शायद किसी दूसरे नेता को यह भूमिका देने से अभी न होता। कांग्रेस में हुआ यह बदलाव इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभी पांच राज्यों में हुये चुनावों में कांग्रेस को पांचो की हार का सामना करना पड़ा है। इस हार ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिये और प्रशांत किशोर की सेवायें लेने के मुकाम तक पहुंचा दिया। इन चुनावों में मिली हार ने प्रदेश के चार उप चुनावों की जीत को भी ढक लिया था। इसलिये कांग्रेस को यह भी हर समय याद रखना होगा।
इसी परिदृश्य में यह भी समरण रखना होगा कि हिमाचल का चुनाव जीतना हारना कांग्रेस और भाजपा दोनों को राष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रभावित करेगा। इसलिए भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा को भी प्रदेश की फील्ड में उतार दिया है। जिस आम आदमी पार्टी को कांग्रेस भाजपा की बी टीम कह चुकी है उसी आप ने सबसे ज्यादा नुकसान अब तक कांग्रेस को ही पहुंचाया है। क्योंकि भाजपा ने तो आप के संयोजक को ही तोड़ कर भाजपा में मिलाकर एक बराबर का जवाब दे दिया है। उसी तर्ज में क्या कांग्रेस भी अपने गये हुये लोगों को वापिस ला पाती है और नये पलायन को रोक पाती है। यह एक बड़ा सवाल होगा। क्योंकि कांग्रेस को प्रदेश में भाजपा और उसकी सरकार के साथ-साथ आप से भी लड़ना होगा। यह लड़ाई कांग्रेस किस तरह से लड़ती है यह देखना रोचक होगा। क्योंकि पिछले दिनों प्रदेश में जिस तरह स्वर्ण समाज ने स्वर्ण आयोग का मुद्दा उठाकर विधानसभा के घेराव तक पहुंचा दिया और उसमें गिरफ्तारियां तक भी हुई। वही मुद्दा आज सिरमौर में स्वर्ण समाज द्वारा दलित नेताओं के हिंसक विरोध तक पहुंच गया है। दलित समाज सरकार और प्रशासन की भूमिका को लेकर पूरे रोष में है। इस मुद्दे पर कांग्रेस को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। क्योंकि पहले जो स्टैंड कांग्रेस के कुछ नेताओं ने लिया है वह संविधान के प्रावधानों और सर्वाेच्च न्यायालय की व्याख्याओं के अनुसार नहीं है। दलित समाज का यह आक्रोश कांग्रेस के बदलाव के साथ ही क्यों मुखर हुआ है? इसे समझना भी आवश्यक होगा क्योंकि दलित समाज प्रदेश में करीब 28% तक पहुंच चुका है।
इसी के साथ कांग्रेस की इस नयी टीम को वह सन्तुलन ही बनाये रखना होगा जो एक समय वीरभद्र ब्रिगेड के गठन के बाद ब्रिगेड के अध्यक्ष और सुखविंदर सिहं सुक्खु के बीच मानहानि का मामला दायर होने तक पहुंच गया था। यह दुसरी बात है कि इस ब्रिगेड को भंग कर दिया गया था और इसके कुछ नेताओं को मुख्य संगठन में जिम्मेदारियां भी दी गयी थी। लेकिन आगे चलकर यही पृष्ठभूमि सुक्खु को हटाने का मुख्य आधार बनी थी। चंबा में वरिष्ठ नेता आशा कुमारी और हर्ष महाजन के बीच राजनीतिक रिश्ते अभी भी सुखद नहीं है यह भी सब जानते हैं। मंडी के लोकसभा उपचुनाव की जीत के बाद ही प्रतिभा सिंह और आशय शर्मा के बीच चुनावी जंग छिड़ गयी थी। आशय के पिता अनिल शर्मा के आप में शामिल होने की चर्चायें बाहर तक आ गयी थी। शिमला में ही कुछ विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों को लेकर टकराव की संभावनाएं बराबर बनी हुयी है। इस परिपेक्ष में पार्टी को क्रियात्मक रूप से एकजुट करना प्रतिभा सिंह के लिये बड़ी चुनौती होगा। इस चुनौती के लिये जब तक सरकार के खिलाफ केंद्र से शिमला तक गंभीर मुद्दे उठाकर नहीं घेरा जाता तब तक कांग्रेस के लिये स्थितियां बहुत आसान नहीं होंगी। क्योंकि जिन-जिन नेताओं को प्रदेश स्तर पर हाईकमान ने जिम्मेदारियां सौंपी हैं वह लोग अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों, अपने चुनावों में व्यस्त हो जायेंगे। प्रदेश में हर बार सत्ता परिवर्तन का आधार भ्रष्टाचार के ही आरोप रहे हैं। लेकिन इस बार कांग्रेस विपक्ष में रहकर सरकार के खिलाफ कोई भी बड़ा मुद्दा अब तक खड़ा नहीं कर पायी है यह भी एक व्यवहारिक सच है। ऐसे में यह देखना जहां दिलचस्प होगा कि कांग्रेस कौन से मुद्दे उठाती है और यह जिम्मेदारी निभाने के लिये कैसी टीम फील्ड में उतारती है।