हिमाचल में भी गुजरात घटने की संभावनाएं बढ़ी

Created on Thursday, 18 November 2021 03:03
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। उपचुनावों के परिणाम आने के बाद अभी तक हार के कारण की समीक्षा के लिये कोई मंथन बैठक नहीं हुई है। किसी तरह की कोई रिपोर्ट न तो प्रदेश से भेजी गयी है और ना ही केंद्र ने कोई रिपोर्ट तलब की है। इस आशय के जितने भी समाचार अब तक सामने आये हैं वह प्रदेश में ही प्लान हुए और यही तक सीमित रहे। यह स्वीकार है प्रदेश के एक बड़े नेता का। अभी तक नेतृत्व के प्रशन को लेकर केंद्र की ओर से कोई अधिकारिक ब्यान नहीं आया है और ना ही मुख्यमंत्री की ओर से ही ऐसा कोई ठोस एक्शन सामने आया है जिससे यह संदेश जाता कि नेतृत्व को लेकर हाईकमान के स्तर पर कोई प्रश्न ही नहीं है। लेकिन जिस हाईकमान ने गुजरात, कर्नाटक और उत्तराखंड में बिना किसी सार्वजनिक कारण से नेतृत्व परिवर्तन करके सबको चौंका दिया था आज वही हाईकमान प्रदेश के चारों उपचुनाव हार जाने और एक में तो पार्टी उम्मीदवार की जमानत भी ना बच पाने के बावजूद यहां नेतृत्व के प्रशन को कैसे टाल देगी। विश्लेषकों का मानना है कि इस समय भाजपा के सामने अगले वर्ष के शुरू में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों का प्रश्न सबसे बड़ा और अहम है। इसी के कारण राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कोई प्रस्ताव तक पारित नहीं किया गया। फिर यह भी एक संयोग है भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। बंगाल चुनावों में मिली हार की जिम्मेदारी संगठन या सरकार किसी के भी नाम नहीं लगाई जा सकी है क्योंकि सभी की भूमिकाएं बराबर रही हैं। लेकिन हिमाचल के उपचुनावों में मिली हार की पहली जिम्मेदारी न चाहते हुए भी नड्डा पर आ जाती है। क्योंकि टिकट वितरण की सारी जिम्मेदारी उस समय नड्डा पर आ गयी जब चेतन बरागटा ने यह आरोप लगाया कि प्रदेश नेतृत्व तो उनके पक्ष में था और हाईकमान ने उनका टिकट काटा। तीनों विधानसभा क्षेत्रों में टिकट सही उम्मीदवारों को न दिये जाने का आरोप लगा है और प्रदेश नेतृत्व ने इस पर कोई खण्डन तक जारी नही किया।
यही नहीं जब कांग्रेस में कन्हैया कुमार शामिल हुए थे और यह मुद्दा बना था कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की हत्या नहीं होनी चाहिये बल्कि उसे ताकतवर बनाया जाना चाहिये तब शान्ता कुमार ने इसका समर्थन किया था। शान्ता कुमार ने अपनी आत्मकथा में भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के जो आरोप लगाये हैं उन आरोपों का केंद्र सरकार और राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से कोई खण्डन तक नहीं आया है। आने वाले दिनों में शान्ता कुमार और उनकी आत्मकथा कांग्रेस के बड़े हथियार बन जायेंगे यह तय है। शान्ता कुमार का आशीर्वाद नड्डा और जयराम के लिए कितना और किस हद तक का है इसे प्रदेश का हर आदमी जानता है। इस पृष्ठभूमि के साथ जब शान्ता कुमार इन उपचुनावों के लिये स्टार प्रचारक बनाये गये तो समझा जा सकता है कि इसका क्या प्रभाव पड़ा होगा।
इस समय प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में यही सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होगा या यह सवाल अब खत्म हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह प्रश्न अपनी जगह खड़ा है क्योंकि हाईकमान की ओर से अभी तक ऐसा कोई ब्यान नहीं आया है जिसमें यह कहा गया हो कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं हो रहा है। इन उपचुनावों में करीब सभी मंत्रियों की जिम्मेदारीयां लगी थी। प्रदेश के बीस विधानसभा क्षेत्रों में मतदान हुआ है जिसमें केवल मण्डी के आठ क्षेत्रों में ही भाजपा को बढ़त मिली है बारह चुनाव क्षेत्रों में पार्टी हारी है। मण्डी में भी इसलिये जीत मिली की मुख्यमंत्री इसी जिले से हैं और अभी एक वर्ष सरकार रहनी है। परंतु अब बारह क्षेत्रों में हार से यही स्पष्ट संदेश जाता है कि आगे सरकार नहीं बन पायेगी। इस हार का असर मण्डी पर भी पड़ेगा यह तय है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि एक दो मंत्रियों पर गाज गिराने से कुछ लाभ नहीं होगा बल्कि ऐसे लोग कल को विद्रोही बनकर और नुकसान करेंगे। ऐसी स्थिति में नेता सहित पूरे मंत्रिमंडल को ही गुजरात की तर्ज पर बदल कर ही नया संदेश दिया जा सकेगा। यह माना जा रहा है कि हर दिन जनता में सरकार की छवि खराब होती जा रही है। क्योंकि इन परिणामों के बाद जो कुछ चण्डीगढ़ में घटा है और उसको लेकर जिस तरह की चर्चाएं उठ रही हैं उससे यह नुकसान लगातार बढ़ता जायेगा यह तय है। फिर नड्डा- शान्ता ने भी नेतृत्व और हार को लेकर कोई ब्यान नहीं दिया है। इनकी खामोशी को भी अलग तरह से देखा जा रहा है।