शिमला/शैल। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पर प्रदेश के हर राजनेता की निगाहें लगी हुई थी। माना जा रहा था कि प्रदेश में हुए उप चुनावों के बाद हो रही इस बैठक में मुख्यमंत्रा और अन्य नेताओं के साथ चुनाव परिणामों को लेकर चर्चा होगी। परंतु बैठक में हिमाचल और राजस्थान का नाम तक नहीं लिया गया। हाईकमान द्वारा प्रदेश का जिक्र तक ना किये जाने से नेता लोग परेशान हो गये हैं। जो लोग संघ भाजपा की कार्यशैली से परिचित हैं वह जानते हैं कि ऐसे मामलों में संबंधित राज्य के नेताओं से विचार विमर्श की कोई बड़ी प्रथा नहीं है। राज्य के बारे में सारा फीडबैक संघ के माध्यम से लिया जाता है। संघ के निर्देशों पर ही नेतृत्व को लेकर फैसले किये जाते हैं। हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं लंबे समय से चली आ रही हैं। लेकिन शायद नड्डा का गृह राज्य होने के कारण यह सवाल टलता रहा। अब जब सरकार चारों उपचुनाव हार गई है तब इससे बड़ा परिणाम और कुछ हो नहीं सकता है। वर्तमान नेतृत्व से सत्ता में वापसी करने की उम्मीद करना अपने को ही अंधेरे में रखना होगा। बल्कि सम्मानजनक हार की उम्मीद भी अपने को झुठलाना होगा। क्योंकि मुख्यमंत्री जिन सलाहकारों में घिर गये हैं उनके कब्जे से बाहर निकलना उनके बस में नहीं रह गया है।
ऐसी वस्तुस्थिति में हाईकमान के पास भी कोई ज्यादा विकल्प नहीं है। लोकसभा में प्रदेश की कुल चार सीटें जिनको केंद्र की सरकार बनने -बनाने में कोई बड़ा योगदान नहीं माना जाता। इसलिये प्रदेश को उसी के हाल पर भी छोड़ा जा सकता है। यदि केंद्र में सरकार बनाने में एक -एक सीट का भी योगदान होने के सिद्धांत को माना जाये तो हाईकमान को प्रदेश को लेकर कोई फैसला अभी लेना आवश्यक हो जायेगा। क्योंकि हिमाचल की यह हार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बन चुकी है। क्योंकि कुछ न्यूज़ साईट्स ने जयराम ठाकुर के महंगाई के ब्यान को केंद्र के खिलाफ बगावत तक करार दे दिया है। वैसे इस बैठक में हिमाचल का नाम तक ना लिये जाने को कुछ विश्लेषक यह मान रहे हैं कि नेतृत्व को लेकर फैसला लिया जा चुका है और इसी माह में घोषित हो जायेगा। क्योंकि हाईकमान के सामने कांग्रेस द्वारा यूपी चुनाव में 40% टिकट महिलाओं को देने की घोषणा ने भी कुछ गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। भाजपा के पास इस समय किसी भी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं है।