शिमला/शैल। मोदी सरकार द्वारा जून 2020 में लाये गये तीन कृषि कानूनों का प्रभाव अब हिमाचल के करीब पांच हजार करोड़ के सेब कारोबार पर भी प्रत्यक्षतः पड़ना शुरू हो गया है। इस समय प्रदेश में अंबानी एग्रो फ्रैश सेब का सबसे बड़ा खरीददार है। उसके प्रदेश में अपने स्टोर हैं और उनमें भारी भण्डारण क्षमता है जो कि सेब उत्पादकों के पास है नहीं। न ही सरकार ने अपने तौर पर कोल्डस्टोरों का निर्माण करवाया है। अब नये कृषि कानूनों के आने से उत्पादक और खरीददार एपीएमसी परिसरों से बाहर भी अपना उत्पाद बेचने और खरीदने के लिये स्वतन्त्र हैं। इस व्यवस्था से उन्हें अपने कारोबार की 1% फीस एपीएमसी को देने की आवश्यकता है। इसलिये अंबानी सीधे उत्पादकों से ही यह खरीद कर रहा है और अपने ही केन्द्रों पर उसकी ग्रेडिंग और पैकिंग कर रहा है। इस व्यवस्था में वह सरकार को फीस देने से बाहर हो जाता है और यहीं पर सरकार को करोड़ों का नुकसान पहुंच रहा है। एग्रो फ्रैश का दावा है कि करीब बीस हजार उत्पादक उसके साथ सीधे जुड़ चुके हैं इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इसमें प्रदेश सरकार को कितना नुकसान पहुंचेगा।
सरकार के नुकसान के अतिरिक्त उत्पादकों का सीधा नुकसान इस कारण से हो रहा है कि इस बार सेब खरीद के रेट में ही सोलह रूपये प्रति किलो की कमी कर दी गयी है। जो सेब पिछले वर्ष 80 से 82 रूपये में खरीदा गया था उसमें अब 16 रूपये की कमी करके खरीदा जा रहा है। रेट में कमी के लिये सेब की गुणवत्ता को जिम्मेदार बताया जा रहा है। लेकिन जब इन रेटों के निर्धारण को लेकर अंबानी के ऐजैन्टों के ही दो अलग -अलग ब्यान सामने आ गये तब यह स्पष्ट हो गया कि रेट कम करने में अंबानी का ही प्ले है और लदानी -अंबानी गठजोड़ के खिलाफ नारे लग गये। लेकिन इस सारे प्रकरण पर जयराम सरकार ने खामोशी अपना ली और उत्पादकों को यह राय दे डाली कि वह कुछ समय के लिये सेब का तुड़ान ही रोक दें। सरकार की इस भूमिका पर उत्पादकों का रोष और बढ़ना स्वभाविक है क्योंकि उसका सीधा नुकसान हो रहा है।
स्मरणीय है कि अंबानी ने पिछले वर्ष रोहडू के मैंदली में सितम्बर माह में सेब खरीदा था और यहीं पर इसकी पैकिंग की गई बाद में इसी सेब को चण्डीगढ़ के एक डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से फूड सेफ्रटी एण्ड स्टैर्ण्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया से लाईसैन्स लेकर छः सेब का पैकेट 196 रू. में बेचा गया। इस तरह सेब उत्पादक से जो सेब 80-82 रूपये में खरीदा उसे उपभोक्ता को 196 रूपये में बेचा गया। सरकार इस सारे खेल में मूक दर्शक की भूमिका में तब भी रही और आज भी है। आज तो उत्पादक के रेट भी 16 रूपये कम कर दिये गये हैं। सेब उत्पादक और उपभोक्ता का यह नुकसान हर वर्ष इसी तरह होने वाला है। क्योंकि नये कृषि कानूनों में उत्पादक और उपभोक्ता को कहीं कोई संरक्षण हासिल नहीं है। बल्कि अब तो विदेशी सेब के आने से बाजार में असन्तुलन और भी बढे़गा। क्योंकि विदेश से आने वाले सेब को आयात शुल्क से मुक्त रखा गया है। यही नहीं विदेश से आने वाले इस सेब की बाजार कीमत पहले से ही तय कर दी जाती है और इसकी खरीद कीमत का भुगतान अग्रिम में ही किया जाता है।
स्व. नरेन्द्र बरागटा ने विदेशी सेब के आयात शुल्क मुक्त होने को लेकर केन्द्र सरकार को इसके विरोध में कई बार पत्र लिखें हैं। विदेशी सेब के इस तरह लाये जाने से स्थानीय उत्पादकों का नुकसान होगा इसको लेकर वह लगातार चिन्तित रहे। आढ़तीयों द्वारा किये जा रहे शोषण को लेकर भी वह दिल्ली की सरकारों से लम्बा पत्राचार कर चुके हैं। सेब को लेकर जिन खतरों के प्रति वह बागवानों को लगातार जागरूक करते रहे हैं आज उन्हीं की पार्टी की सरकार में सेब उत्पादक का शोषण हो रहा है और सरकार चुपचाप यह सब देख रही है क्योंकि हस्तिनापुर से बंधी है। आज सेब उत्पादक को स्पष्ट हो गया है कि इन कृषि कानूनों से उसका लगतार नुकसान होना तय है। इसलिये इन कानूनों की वापसी के लिये उसे किसान आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी निभाना आवश्यक हो जायेगा यह अब उसे समझ आ गया है।