शिमला/शैल। प्रदेश से डीजीपी सहित तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने केन्द्र मे जाने के लिये आवेदन कर दिया है। डीजीपी संजय कुंडु तो मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं इस नाते सरकार के बारे में सबसे अधिक जानकारीयां उनके पास होना स्वभाविक है। फिर पुलिस के तो तन्त्र की ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह रहती है कि वह सरकार के आंख, कान और नाक की भूमिका पूरी ईमानदारी और सक्रियता से निभाये। चुनावों के दौरान तो सत्तारूढ़ दल सबसे अधिक विश्वास पुलिस की सूचनाओं पर करता है। सीआईडी चुनावों से पहले यह सर्वे तक करती है कि जनता का रूझान किस दल की ओर कितना है। ऐसे में जब पुलिस प्रमुख ही चुनावों से पहले ही केन्द्र मे जाने के प्रयासों में लग जाये तो स्वभाविक है कि इस पर चर्चाएं तो उठेंगी ही। क्योंकि बहुत सारे ऐसे मामले होते हैं जिन्हें आगे बढ़ाने के लिये पुलिस की राय ली गयी होती है। ऐसे मामलों का चुनावों पर प्रभाव भी पड़ता है। चर्चा है कि स्वास्थ्य विभाग को लेकर जो मामला दर्ज किया गया था वह दो मन्त्रीयों और कुछ पुलिस अधिकारीयों के दवाब में ही लिया गया फैसला था। मुख्यमन्त्री शायद इस पक्ष में नही थे। इसी तरह कुल्लु में एक मामला दर्ज हुआ। चर्चा है कि सीआईडी यह मामला दर्ज करने के पक्ष नहीं थी और पुलिस ने फिर भी यह मामला दर्ज कर लिया। ऐसे मामले जब भी देर-सवेर अदालत में पहुंचते हैं तब वह फिर चर्चा में आ जाते हैं। तब फिर नेतृत्व पर सवाल आते हैं। ऐसे बहुत सारे मामले हैं जो आने वाले दिनों में चर्चा के विषय बनेंगे।
इस परिदृश्य में इन वरिष्ठ अधिकारीयों का दिल्ली जाने के लिये आवेदन करना राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय होना स्वभाविक हो जाता है क्योंकि अभी सरकार ने मण्डी और धर्मशाला क्षेत्र में दो मीडिया कोआर्डिनेटर नियुक्त किये हैं। यह नियुक्तियां भी अब सरकार के चौथे वर्ष में हुई हैं। इन नियुक्तियों से भी यही संदेश जाता है कि सरकार का सूचना और जन संपर्क विभाग भी शायद सरकार की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उत्तर पाया है इसीलिये उपचुनावों से पहले इन नियुक्तियों को अंजाम दिया गया है। अभी मण्डी, कांगड़ा और शिमला लोकसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं। इन्ही को ध्यान में रखकर इन्ही क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले पत्रकारों को यह नियुक्तियां दी गयी हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनो में शिमला और हमीरपुर के क्षेत्रों में भी ऐसी ही नियुक्तियां की जायेंगी।
किसी भी सरकार के लिये पुलिस और सूचना एवम् जन संपर्क विभाग चुनावी दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ऐसे में जब इन्हीं विभागों में चुनावों से पहले इस तरह की स्थितियां बनना शुरू हो जायें तो उसके कई अर्थ लगने शुरू हो जाते हैं। फिर इस समय तो भाजपा केन्द्र से लेकर राज्यों तक सभी जगह परफारमैन्स को लेकर लगातार आकलनों मे जुट गयी है। केन्द्र के मन्त्रीमण्डल में फेरबदल के दौरान एक दर्जन मन्त्रीयों की छुट्टी किया जाना उत्तराखण्ड में मुख्यमन्त्री का बदलना और अब कर्नाटक में मुख्यमन्त्री बदलने की कवायद शुरू होना इसी आकलन के परिणाम माने जा रहे हैं। हिमाचल में भी इसी आकलन के लिये शिमला और धर्मशाला में पांच दिन तक कोर कमेटी का मन्थन चला था। इस मंथन में 2017 में जिन 68 लोगों ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था। उन सबको बुलाया गया था। इस बैठक में हुई चर्चा के बाद जो रिपोर्ट कार्ड तैयार हुआ और केन्द्र को सौंपा गया उसमें बड़े पैमाने पर नॉन-परफारमैन्स आयी है। यह नॉन परफारमैन्स ही इस समय केन्द्र के सामने बड़ा सवाल बना हुआ है। इसीलिये पुलिस और सूचना एवम् जन संपर्क विभागों में चल रही गतिविधियां विश्लेष्कों के लिये महत्वपूर्ण बनी हुई हैं।