क्या मीडिया को गोदी मीडिया होने से बचा पायेंगे अनुराग ठाकुर

Created on Saturday, 17 July 2021 17:42
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। अनुराग ठाकुर हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं इसलिये राज्यमन्त्री से अब कैबिनेट मन्त्री बनने पर प्रदेश की जनता का उत्साहित होना स्वभाविक हो जाता है। कोरोना में भी उन्होंने प्रदेश की जनता और सरकार की बहुत सहायता की है। बल्कि उनकी सक्रियता के बाद ही जे पी नड्डा, किश्न कपूर और सुरेश कश्यप सक्रिय हुए हैं। हिमाचल में क्रिकेट के लिये जो कुछ उन्होंने किया है उसके कारण अब फिर प्रदेश का युवा उनकी ओर देखने लग गया है। प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं के लिये वह क्या कर पाते हैं इस पर सबकी नज़रें लगी रहेंगी। खेल और युवा सेवाओं के अतिरक्ति उनके पास सूचना और प्रसारण मन्त्रालय भी हैं यह मन्त्रालय एक समय स्व. श्रीमति गांधी और लाल कृष्ण आडवानी जैसे नेताओं के पास भी रहा है तथा अभी ही यहां से प्रकाश जावडेकर की मन्त्रीमण्डल से छुट्टी भी हुई है। सूचना और प्रसारण मन्त्रालय हर सरकार के लिये महत्वूपर्ण तथा संवदेनशील मन्त्रालय माना जाता है क्योंकि इसका सीधा संबंध मीडिया से रहता है। सरकार की छवि इसी मीडिया के माध्यम से बनती बिगड़ती है। और आज मीडिया के एक बड़े वर्ग को गोदी मीडिया की संज्ञा मिल चुकी है। यह संज्ञा मिलना समाज, सरकार और स्वयं मीडिया सभी के लिये घातक है। क्योंकि आम आदमी मीडिया को आज भी ‘‘गर तोप मुकबिल हो तो अखबार निकालो’’ की भूमिका में ही देखना चाहता है। क्या अनुराग ठाकुर मीडिया पर लग रहे गोदी मीडिया के लान्छन से बाहर आने में मद्द कर सकेंगे यह बड़ा सवाल रहेगा।
यही नहीं आज वैचारिक असहमति को देशद्रोह करार देने का चलन हो गया है। इस सरकार में वैचारिक मत भिन्नता के लिये कोई स्थान नहीं रह गया है इसी मत भिन्नता पर पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह से लेकर कई अन्य मामले परोक्ष/अपरोक्ष में बनाये जा रहे हैं। अनुराग ठाकुर के अपने ही गृह राज्य हिमाचल में कई पत्रकारों के खिलाफ मामले बनाये गये हैं और यहां भाजपा की ही सरकार है। विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल में मामला दर्ज करवाया गया था। इस मामले में आये फैसले से भी सरकार ने कोई सीख नहीं ली है। आज सरकार की पॉलिसी को पीटीआई जैसी न्यूज़ ऐजैन्सी ने ही अदालत में चुनौती दे रखी है। देशद्रोह के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब तलब कर रखा है। इस तरह आज मीडिया और सरकार के संबंधों को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ चुकी है। स्वभाविक भी है कि जब मीडिया संस्थान बड़े उद्योगपतियों की मलकियत हो जायें और उनका पहला काम उस उ़द्योगपति के हितों की रक्षा करना हो जाये जो सरकार की कृपा से ही सुरक्षित रह सकते हैं तब मीडिया के मूल धर्म से समझौता करना अनिवार्यता हो जाती है। आज मीडिया इसी दौर से गुजर रहा है क्योंकि सरकार की कोई निश्चित पॉलिसी नहीं है। सरकार विज्ञापन देने वाला सबसे बड़ा स्त्रोत है लेकिन आज सरकारें विज्ञापन के पैसे को सरकार की बजाये पार्टी के हितों के हिसाब से खर्च कर रही है। इस दिशा में एक पारदर्शी नीति की आवश्यकता है। इस संद्धर्भ में सबसे पहले डी ए वी पी में सुधार लाने की आवश्यकता है क्योंकि वहां पर तो जवाब देने तक की परम्परा नहीं है।
इस परिदृश्य में आज नये मन्त्री के लिये यह एक कसौटी हो जायेगी कि वह मीडिया को गोदी मीडिया बनने की बाध्यता से बाहर निकालने में योगदान करे। इसके लिये एक पॉलिसी व्यापक विचार-विमर्श के बाद सामने लायें।