नड्डा और वीरेन्द्र कंवर के अतिरिक्त और कोई मन्त्री या नेता अपनी गृह पंचायतों में निर्विरोध जीत हासिल नहीं कर सका।
शिमला/शैल। पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव चल रहे हैं इनके लिये 17,19 और 21 जनवरी को वोट डाले जायेंगे। इन चुनावों में किसको जीत मिलती है कौन राजनीतिक पार्टी जीत का दावा करती है यह परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। अभी तक स्थिति यही है कि 102 पंचायतें निर्विरोध चुनी गयी है जिनमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की गृह पंचायत विजय नगर बिलासपुर जिला में और पंचायती राज मन्त्री विरेन्द्र कंवर की गृह पंचायत पलाहटा ऊना जिला में निर्विरोध चुनी गयी है। पलाहटा में तो मन्त्री
का बेटा ही पंचायत प्रधान चुना गया है। इन दो के अतिरिक्त अन्य किसी मन्त्री या बड़े पदाधिकारी का ऐया कोई दावा सामने नहीं आया है कि किसी की गृह पंचायत निर्विरोध चुनी गयी हो।
पंचायती राज संस्थाओं से पहले स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए हैं और इनके परिणाम भी सामने आ चुके है। स्थानीय निकायों के चुनावों में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अपनी -अपनी जीत का दावा किया है। कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर ने दावा किया है कि निकाय चुनावों में कांगे्रस ने भाजपा को करारी हार दी है। राठौर के इस दावे के बाद भाजपा अध्यक्ष का दावा सामने आया है कि भाजपा ने 70% निकायों में जीत हासिल की है। राठौर ने भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप को चुनौती दी है कि वह अपने विजय उम्मीदवारों की सूची जारी करें। भाजपा ने ऐसी कोई सूची जारी नहीं की है लेकिन इसी बीच हमीरपुर के सांसद केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर का ब्यान आया है और उन्होंने निकाय चुनावों में जनता का भाजपा में विश्वास व्यक्त करने के लिये धन्यवाद किया है। अनुराग ठाकुर ने अपने ब्यान में निकाय चुनावों के कुछ आंकड़े भी जारी किये हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 29 नगर परिषदों में से 22 पर भाजपा को जीत हासिल हुई है। नगर परिषदों के 262 वार्डों में से 142 में भाजपा की जीत का दावा किया गया है। 21 नगर पंचायतों में से 18 में जीत का दावा किया है लेकिन नगर पंचायतों के 153 वार्डों में से 79 वार्डों में जीत का दावा है। स्थानीय निकायों में वार्डों मे जीत के जो आंकड़े अनुराग ठाकुर के ब्यान मे दिये गये हैं उनसे भाजपा अध्यक्ष का 70% की जीत का दावा किसी भी गणित में सही नहीं उतरता है।
स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव पार्टीयों के अधिकारिक चुनाव चिन्ह पर नहीं होते है। इसलिये इन चुनावों में प्रायः सभी पार्टीयां अपनी -अपनी जीत का दावा कर लेती हैं और इसमें सत्तारूढ दल को सत्ता में होने का लाभ भी मिल जाता है। लेकिन भाजपा की जीत को लेकर पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप और वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर के ब्यान में आये आंकड़ों में पूरा ताल मेल नहीं बैठता है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सत्ता मे होने के बावजूद स्थानीय निकायों में यह जीत 50% से ज्यादा नहीं है। नड्डा और विरेन्द्र कंवर की गृह पंचायतों के अतिरिक्त किसी भी अन्य मन्त्री या बडे नेता की गृह पंचायत या निकाय में निर्विरोध चुनाव न होना पार्टी और सरकार की नीतियों और नेताओं की लोकप्रियता पर निश्चित रूप से प्रश्नचिन्ह लगाता है। क्योंकि लोकसभा और फिर विधानसभा के दो उपचुनाव जिस भारी बहुमत के साथ भाजपा ने जीते थे इसके बाद अब यही निकाय चुनाव हुए हैं और इनमें भाजपा और कांग्रेस का बराबर रहना निश्चित रूप से नये संकेत देता है फिर स्थानीय निकाय तो प्रदेश के शहरी क्षेत्रों तक ही सिमित रहते हैं और शहरी क्षेत्रों को तो भाजपा का ज्यादा प्रभावी क्षेत्र माना जाता है। कांग्रेस के साथ बराबरी की यह स्थिति एक वर्ष के अन्तराल में ही आ गयी है क्योंकि इस एक वर्ष में सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर जिस तरह के सवाल उछले हैं उनका जनता पर गंभीर असर पड़ा है। अपरोक्ष में मुख्यमन्त्री ने भी इस प्रभाव को स्वीकार किया है क्योंकि कार्यप्रणाली के लिये उन्होंने अधिकारियों के एक वर्ग को जिम्मेदार ठहराया है। जबकि वास्तव में कुल्लु कांड से लेकर आज जहां तक दबी जुबान में चर्चाएं पहुंच गयी हैं उनका प्रभाव तो आने वाले समय में और भी गंभीर होगा। बहुत संभव है कि निकट भविष्य में संगठन के मंच पर भी कुछ सवाल उठने शुरू हो जायें क्योंकि तन्त्र के अलावा भी बहुत सारे लोग स्थितियों पर पैनी नजर बनाये हुए हैं।