शिमला/शैल। कांग्रेस हाईकमान को जब पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पत्र लिखकर यह मांग की थी कि संगठन में पदाधिकारियों का चयन मनोेनयन से नही बल्कि चुनाव से होना चाहिये तब उस पत्र पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं पार्टी के भीतर और बाहर भी उभरी थीं। इस पत्र के सार्वजनिक होते ही पूर्व मन्त्रीे और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे ठाकुर कौल सिंह ने अपना स्पष्टीकरण जारी करके कहा था कि उन्हेे यह बताया गया था कि यह पत्र पार्टीे में सदस्यता अभियान को लेकर लिखा जा रहा है। हिमाचल से इस पत्र पर हस्ताक्षर करनेे वाले दो ही नेता थे कौल सिंह और आनन्द शर्मा। कौल सिंह ने तो स्पष्टीकरण जारी करकेे अपनीे स्थिति स्पष्ट कर दी थी लेकिन आनन्द शर्मा की ओर सेे ऐसा कुछ भी सामनेे नही आया। परन्तु आनन्द शर्मा के खिलाफ पार्टी केे भीतर रोष बनने लगा और यह उपाध्यक्ष खाची के ब्यान के माध्यम से बाहर भी आ गया। खाची ने सीधेे शब्दो में आनन्द शर्मा सेे यह पत्र लिखने के लिये क्षमा मांगने की मांग कर दी। संयोगवश खाची के ब्यान के बाद ही पार्टी में राष्टीय स्तर पर कई पदाधिकारियों को बदला गया। इस बदलाव से आनन्द शर्मा और गुलाम नवी जैसे नेता भी प्रभावित हुए। इसी बदलाव में हिमाचल की प्रभारी रजनी पाटिल को भी बदल दिया गया। चर्चा है कि रजनी पाटिल को हिमाचल का प्रभार आनन्द शर्मा के आर्शीवाद से ही मिला था। हिमाचल कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर भी आनन्द शर्मा के आर्शीवाद से ही इस पद पर पहंुचेे हैं यह सब जानते हैं। भले इस विवादित पत्र के बाद राठौर और आनन्द में नीतिगत असहमति उभरी हो। लेकिन आनन्द शर्मा के ही कारण राठौर को यह पद मिला है क्योंकि यह आनन्द ही थे जिन्होने इसके लिये वीरभद्र, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री को सहमत कर लिया था। अब क्योंकि रजनी पाटिल की जगह यह प्रभार राजीव शुक्ला को मिल गया है इसलिये यह उम्मीद की जा रही है कि कुलदीप राठौर को कोई और जिम्मेदारी देकर प्रदेश को नया अध्यक्ष दिया जायेगा। राजीव शुक्ला पहले भी प्रदेश का कार्यभार संभाल चुके हैं इस नाते वह सारे वरिष्ठ नेताओं को पहले से ही जानते हैं। इसलिये उन्हे कोई बड़ी कठिनाई नही आयेगी यह माना जा रहा है।
कुलदीप राठौर ने जब सुक्खु की विरासत संभाली थी तब उन्होने संगठन के पदाधिकारियों को बदलने की बजाये लगभग उतने ही नये पदाधिकारी उसमें और जोड़ दिये। लेकिन इस तरह कार्यकारिणी का लम्बा चैड़ा विस्तार भी चुनावांे में पार्टी को कोई लाभ नही दे पाया। क्योंकि वरिष्ठ नेता ही संभावित उम्मीदवारों को लेकर इतनी हल्की प्रतिक्रियाएं देते रहे कि उससे पार्टी की चुनावी गंभीरता ही नही बन पायी। जब पार्टी के वरिष्ठ नेता ही उम्मीदवार को मकरझण्डू की संज्ञा देंगे और ऐसे ब्यान पर पार्टी अध्यक्ष और प्रभारी दोनांे खामोश रहेंगे तो राजनीति की थोड़ी सी समझ रखने वाला अन्दाजा लगा सकता है कि इसका अर्थ क्या है। इस तरह लोकसभा चुनावों मेें जो वातावरण बना उससे विधानसभा के उपचुनावों में भी पार्टीे उभर नही पायी और अध्यक्ष के सारे आकलन और दावे फेल हो गये।
आज केन्द्र में जिस तरह से सरकार नयी नौकरीयों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है उससे पूरे युवा वर्ग में असन्तोष है। इसी असन्तोष के चलते प्रधानमंत्री के जन्मदिन को बेरोजगार दिवस के रूप में मनाया गया। लेकिन यह आयोजन केवल एक दिन का कार्यक्रम होकर ही रह गया है। जबकि इसको प्रदेश भर में हर रोज ताजा रखने की जरूरत है लेकिन ऐसा हो नही रहा है। इसी तरह आज कृषि विधेयकों को लेकर किसान सड़कों पर हैं। इन विधेयकों से आने वाले दिनो में हर रशोई प्रभावित होगी। लेकिन इस रोष को भी जनता तक ले जाने के लिये कोई कार्यक्रम पार्टी की ओर से सामने नही आ पाया है। पार्टी को यह लाईन देना अध्यक्ष का काम है। लेकिन वर्तमान में स्थिति यह बन चुकी है कि हर विषय पर अध्यक्ष को स्वंय ही मीडिया के सामने आना पड़ रहा है। अध्यक्ष और प्रवक्ता दोनों की जिम्मेदारी स्वंय को निभानी पड़ रही है। यही इस समय की अध्यक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है। ऐसा लग रहा है कि पार्टी के बड़े नेताओं से अपेक्षित सहयोग नही मिल रहा है। जब आवश्यकता हर रोज सरकार के खिलाफ आक्रमकता बढ़ाने की है इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि पार्टी को सरकार खिलाफ लड़ाई के लिये तैयार करने हेतु संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव करने होंगे।