शिमला/शैल। क्या हिमाचल कांग्रेस के समीकरण बदलेेंगे? यह सवाल तब से उभरा है जबसे यह सामने आया है कि कांग्रेस के जिन वरिष्ठ 23 नेताओं ने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अप्रत्यक्षतः सोनिया के नेतृत्व को चुनौती दी है उसमें प्रदेश के दो नेता आनन्द शर्मा और कौल सिंह ठाकुर भी शामिल हैं। यह पत्र जैसे ही लीक होकर मीडिया के माध्यम से सबके सामने आया तभी से इस पर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया। कौल सिंह ठाकुर ने तुरन्त स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उन्हें यह बताया गया था कि पत्र पार्टी के सदस्यता को लेकर लिखा जा रहा है। इसी के साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सोनिया-राहुल के नेतृत्व पर उन्हें पूरा विश्वास है। कौल सिंह के अतिरिक्त पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर किसी भी नेता ने पत्र और पत्र लिखने वाले नेताओं की निंदा नही की है। यह साहस केवल पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष केहर सिंह खाची ने ही दिखाया है। खाची ने एक प्रैस ब्यान जारी करके न केवल पत्र लिखने वालों की निंदा की है बल्कि आनन्द शर्मा से सार्वजनिक माफी की मांग भी की है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में खाची का ब्यान पार्टी में एक बड़ी चर्चा का मुद्दा बनेगा और पार्टी के समीकरणों को प्रभावित करेगा।
हिमाचल मेे इस समय भाजपा का विकल्प केवल कांगे्रस ही है यह स्पष्ट है। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने प्रदेश में 2014 और 2019 के लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव हारे हैं उनसे पार्टी के वरिष्ठतम नेतृत्व से लेकर सामान्य कार्यकर्ता तक मनोबल गिरा है। इसी का परिणाम है कि आज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ऐसा व्यक्ति बैठा है जो विधायक भी नही है। पार्टी लगातार तीन चुनाव हार गयी हैं लेकिन इस हार के कारणो की ईमानदार समीक्षा आज तक सामने नही आ पायी है और न ही उसके बाद सुधार के कोई ठोस कदम उठाये गये हैं। हिमाचल में सत्ता दो ही पार्टीयों कांग्रेस और भाजपा के बीच रही है। कोई भी पार्टी लगातार दो बार सत्ता नही पा सकी है। लेकिन जिस तरह की हार कांग्रेस को अब 2014, 2017 और 2019 में मिली है ऐसा कभी भाजपा के साथ नही हुआ है। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि कांग्रेस की इस स्थिति का ईमानदारी से विश्लेषण किया जाये क्योंकि सत्ता पक्ष के साथ ही एक प्रभावी विपक्ष भी अवश्य चाहिये। इस समय प्रदेश का कर्जभार 60 हजार करोड से पार जा चुका है। इस कर्ज का असर प्रदेश के विकास और युवाओं के रोज़गार तथा मंहगाई पर पड़ता है। लेकिन प्रदेश की इस स्थिति पर आज तक न कांग्रेस ने और न ही भाजपा ने कभी इस पर सार्वजनिक चर्चा उठाने का साहस किया है। जबकि यही पार्टीयां सत्ता में रही हैं। इन्ही के मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल और आज जयराम की नीतियां इसके लिये जिम्मेदार रही हैं। क्योंकि जब स्वर्गीय रामलाल ठाकुर ने सत्ता छोड़ी थी तब प्रदेश 80 करोड़ के सरप्लस में था यह श्वेत पत्र के माध्यम से 1998 में सामने आ चुका है।
प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनो एक दूसरे के खिलाफ विपक्ष में बैठकर भ्रष्टाचार के आरोप पत्र जारी करते आये हैं और फिर स्वयं सत्ता में आकर उन आरोपों पर कभी जांच का जोखिम नही उठाया। दोनो पार्टीयां एक दूसरे पर हिमाचल बेचने के आरोप लगाती रही हैं जिन पर कभी निर्णायक जांच नही हुई है। भ्रष्टाचार के हमाम में दोनो पार्टीयां बराबर की नंगी है। इस वस्तुस्थिति के बावजूद हर चुनाव में भ्रष्टाचार एक निर्णायक भूमिका में रहा है यह भी एक सच है। आगे भी भ्रष्टाचार इसी भूमिका में रहेगा यह तय है। वीरभद्र के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को भाजपा ने हर चुनाव में भुनाया है। आज भी यह मामले अदालतों में लंबित हैं। इसी तरह आशा कुमारी का मामला भी उच्च न्यायालय में लंबित है। मामलों का इस तरह लंबित रहना निश्चित रूप से आक्रामकता को प्रभावित करता है भाजपा इस स्थिति का राजनीतिक लाभ लेती रही है। ऐसे में जब तक भाजपा नेतृत्व के खिलाफ कांग्रेस का उभरना आसान नही होगा इस परिदृश्य में यदि प्रदेश कांग्रेस की कोई वर्तमान स्थिति का आकलन किया जाये तो कुलदीप राठौर अभी तक पार्टी को कोई ठोस दशा दिशा नही दे पाये हैं। राठौर विधायक नही हैं और उन्हें अध्यक्ष बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आनन्द शर्मा की ही रही है यह सभी जानते हैं। आनन्द शर्मा ने ही वीरभद्र सिंह, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री को राठौर के लिये राज़ी किया था। वीरभद्र सिंह ने, सुक्खु को हटाने के लिये पूरी ताकत लगा रखी थी और यह बाकि नेता उन्ही के प्रभाव में थे इसलिये सब राठौर पर सहमत हो गये। आनन्द शर्मा आज कांग्रेस की केन्द्रिय राजनीति में एक बड़ा नाम हैं लेकिन आनन्द शर्मा को दिल्ली में स्थापित करने में वीरभद्र सिहं का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। यह वीरभद्र ही थे जो आनन्द शर्मा को भाजपा की विद्यार्थी परिषद से निकालकर कांग्रेस में लाये थे। लेकिन आनन्द शर्मा केन्द्र में जितना बड़ा नाम हो गये थे उस अनुपात में उनका हिमाचल के विकास के लिये योगदान नही रहा है। आज जब वह पत्र लिखने वालोेें की कतार में पाये गये हैं तब प्रदेश से कोई भी उनके समर्थन में खड़ा नही हो पाया है। कौल सिंह ने भी स्पष्टीकरण देकर आनन्द को अकेला छोड़ दिया है।
इस परिदृश्य में आनन्द शर्मा और कौल सिंह ठाकुर आज हिमाचल में भाजपा के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा खड़ा कर पायेंगे इसकी संभावना नही के बराबर हो जाती है। इसी तरह कुलदीप राठौर, आनन्द शर्मा के प्रभाव से बाहर आकर कुछ कर पायेंगे यह भी संभव नही लगता। वीरभद्र और आशा कुमारी की लंबित मामलों के कारण सीमाएं सिमित हो गयी हैं। कौल सिंह के साथ पिछले दिनों जिन नेताओं ने खड़े होने का साहस जुटाया था वह सब इस पत्र प्रकरण के बाद रक्षात्मक भूमिका में आ जायेंगे यह स्वभाविक है। इस वस्तुस्थिति में कांग्रेस को नये नेतृत्व की तलाश में अभी से पूरी सक्रियता से लगना होगा। क्योंकि विधानसभा के अन्दर जो मुद्दे उठाये जाते हैं यदि उन्हें संगठन उसी तरह से जनता में नही ले जाता है तो उनका वांच्छित लाभ नही मिल पाता है और अब तक यह सबसे बड़ी कमी रही है। संगठन की ओर से सरकार और भाजपा के खिलाफ आक्रामकता की धार अभी तेज नही हो पायी है। यही नहीं अभी तक कांग्रेस के सारे बड़े नेता एक मंच पर आकर अपनी एकजुटता का प्रमाण नही दे पा रहे हैं। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और सरकार बनाने में इसका योगदान सबसे बड़ा रहता है। जीएस बाली, सुधीर शर्मा, केवल सिंह पाठानिया, विजय सिंह मनकोटिया, अजय महाजन, संजय रत्न और चन्द्र कुमार सब बड़े नाम हैं लेकिन यह सब एक मंच पर अपने-अपने अहम के चलते नही आ पा रहे हैं। बिलासपुर में सुरेश चन्देल भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं लेकिन राम लाल ठाकुर और चन्देल अभी तक एक मंच पर नही हैं। शिमला में वीरभद्र सिंह अभी तक रोहित ठाकुर को अपने साथ खड़ा नहीं कर पाये हैं। कुल मिलाकर आज भी यह स्थिति है कि किसी भी जिले के सारे नेता आपस में इकट्ठे नही हैं। बल्कि इसी के कारण अपने ही लोगों को हराने के आरोप आपस में लगते रहे हैं। लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने इस स्थिति को सुलझाने के प्रयास नही किये हैं। केन्द्रिय प्रभारीयों की भूमिका भी इस सन्द्धर्भ में स्पष्ट नहीं रही है। यदि आज भी यही स्थिति जारी रहती है तो निश्चित रूप से इससे न केवल कांग्रेस का ही नुकसान होगा बल्कि प्रदेश का भी होगा यह तय है।