कांगड़ा-धर्मशाला क्षेत्र में भू माफिया सक्रिय मनकोटिया ने लिखा पत्र

Created on Tuesday, 11 August 2020 09:46
Written by Shail Samachar

माफिया को मन्त्राी के संरक्षण का आरोप
2008 में भी 97 जमीन खरीद मामलों में अनियमितताओं के लग चुके हैं आरोप
तीन आईएएस अधिकारी भी रह चुके हैं लाभार्थी
शिमला/शैल। राजस्व विभाग का कार्यभार संभालने के बाद विभाग के अधिकारियों से बेनामी सौदों और धारा 118 के तहत मांगी गयी अनुमतियों की जानकारी मांगी है। माना जा रहा है कि इस संबंध में विभाग कोई सौ फाईलों की जानकारी मन्त्री के सामने रखने जा रहा है। स्मरणीय है कि जयराम सरकार ने इन्वैस्टर मीट के माध्यम से प्रदेश में उद्योगपतियांे को निवेश के लिये आमन्त्रित किया है। इस आमन्त्रण पर करीब 92000 करोड़ के निवेश का आश्वासन भी सरकार को मिल चुका है। कोरोना के कारण फिलहाल यह निवेश रूक गया है लेकिन जब भी स्थितियां सामान्य होंगी इस दिशा में गतिविधियां रफ्तार पकड़ेंगी। इस संभावित निवेश को जमीन पर उतरने के लिये अन्ततः जमीन की आवश्यकता पड़ेगी। संभव है कि बहुत सारे निवेशकों को सरकार स्वयं ही जमीन उपलब्ध करवा दे। लेकिन सरकार के प्रयासों के बावजूद बहुत सारे निवेशक अपने स्तर पर जमीने खरीदने का प्रयास करेंगे। ऐसे प्रयासों में ही बेनामी सौदों और धारा 118 के तहत अनुमतियों की स्थिति आती है।
 किन जगहों पर किस तरह के उद्योग स्थापित होंगे सरकार में इसकी पूरी योजना बनाई जाती है। ऐसी योजना की जानकारी सबसे पहले योजना बनाने वाले अधिकारियों और योजना की अनुमति देने वाले मन्त्रीयों को ही रहती है। इस तरह सबसे पहले ऐसे संभावित स्थानों पर जमीन खरीदने का काम अधिकारी और मन्त्री ही परोक्ष/अपरोक्ष में शुरू करते हैं। यहीं से बेनामी सौदों का चलन भी शुरू होता है। इस सरकार में भी ऐसे कारनामें शुरू हो चुके हैं इस आशय का आरोप पिछले दिनों धर्मशाला में एक पत्रकार वार्ता में पूर्व मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया ने लगाया है। उन्होने आरोप लगाया कि जयराम का एक मन्त्री अपरोक्ष में जमीनें खरीदने में लग गया है। मनकोटिया ने इस आशय का एक पत्र भी मुख्यमन्त्री को भेजकर उसमें कुछ सवाल पूछे हैं।
स्मरणीय है कि हिमाचल में बेनामी सौदों और धारा 118 के प्रावधानों की अवहेलना किये जाने के मामले 1990-91 के बाद से लगातार चर्चा का विषय बनते रहे हैं। कांग्रेस ऐसे मामलों में भाजपा पर और भाजपा कांग्रेस पर प्रदेश को बेचने के आरोप लगाते रहे हैं। ऐसे मामलों की जांच के लिये प्रदेश में एस एस सिद्धू, आर एस ठाकुर और डी पी सूद की अध्यक्षता में तीन बार आयोग भी गठित हो चुके हैं लेकिन इन आयोगों की रिपोर्टों के आधार पर किसी को सज़ा भी मिली हो ऐसा अभी तक सामने नही आया है।
धारा 118 के प्रावधानों की उल्लघंना के मामलों की चर्चा और उनका रिकार्ड सदन के पटल पर आने के बाद भी जब इस पर कोई कारवाई नही होती है तब पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। स्मरणीय है कि जब चुनाव आधार संहिता लागू हो जाती है तो सरकार ऐसा कोई फैसला नही लेती है जिसके कारण व्यक्ति विशेष को तो लाभ पहुंच जाये और उसके बदले में सरकार को नुकसान हो जाये जमीन खरीद में यह नियम है कि खरीदने और बेचने वाले दोनों का पूरा पता रिकार्ड पर दर्ज हो। धारा 118 की अनुमति संबंधित जिलाधीश देता है उसमें बेचने वाले को राजस्व का फार्म एल आर XV भरना पड़ता है जिसमें जिलाधीश प्रमाणित करता है कि इस जमीन के बेचने के बाद बेचने वाला भूमिहीन तो नही हो जाता है। बेचने वाले के पास आय का क्या साधन रह जाता है। सिंचाई वाली जमीन किसी अन्य उद्देश्य के लिये नही बेची जा सकती है। नौतोड़ में मिली हुई जमीन भी नही बेची जा सकती है किचन गार्डन के लिये भी जमीन खरीद की अनुमति नही मिलती है। बेची जाने वाली जमीन पर पेड़ों का पूरा ब्यौरा देना पड़ता है। यह सबकुछ जिलाधीश प्रमाणित करता है।
वर्ष 2007 में चुनाव आचार संहिता लगने के 29 दिसम्बर तक धारा 118 के तहत जमीन खरीद के 97 मामलों में अनुमतियां दी गयी थी। कुछ मामलों  में तो विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद यह अनुमतियां दी गयी हैं जबकि सरकार हार गयी हुई थी। यह अनुमतियां पाने वालों में प्रदेश के तीन आईएएस अधिकारी भी शामिल रहे हैं जिनमें से दो तो जयराम सरकार में भी महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं। सभी 97 अनुमतियों में कोई न कोई गंभीर कमी है जिसके कारण यह रद्द हो जानी चाहिये थी। लेकिन केवल प्रियंका गांधी वाड्रा के मामले में सरकार ने कारवाई की बात करी थी। जबकि यह सभी 97 मामलें विधानसभा में चर्चा में आये थे और सभी का रिकार्ड सदन के पटल पर रखा गया था। सभी में पायी गयी कमीयों को दर्शाया गया था। सदन में गंभीर बहस हुई थी लेकिन अन्तिम परिणाम शून्य ही रहा किसी मामलें में कोई कारवाई नही हुई।
अब पूर्व मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया ने कांगड़ा-धर्मशाला क्षेत्र में एक भू माफिया द्वारा बडे पैमाने पर जमीन खरीदने का मामला उजागर किया गया है। इन लोगों को जयराम मन्त्री मण्डल के ही एक मन्त्री का संरक्षण प्राप्त होने की चर्चा है। यही लोग नगर निगम धर्मशाला के क्षेत्र में एक बड़े होटल का निर्माण कर रहे हैं। संरक्षण देने वाले मन्त्री के खिलाफ धर्मशाला में एक समय देवदार के पेड़ काटने का भी आरोप विभाग पर लग चुका है और इस संबंध में उच्च न्यायालय में एक महिला द्वारा पत्र लिखने के बाद यह मामला उठ चुका है। अब विजय मनकोटिया ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखने के साथ ही प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री और प्रदेश के राज्यपाल के भी संज्ञान में लाकर इस पर कारवाई की मांग की है। अब देखना रोचक होगा कि मनकोटिया के पत्र पर कोई कारवाई होती है या इसका परिणाम भी 2008 में उठे 97 मामलों जैसा ही होता है।